अभिनन्दनीय भारत – सारांश
यह कविता हमारे देश भारत के प्रति असीम प्रेम, श्रद्धा और गौरव की भावना को व्यक्त करती है। कवि भारत को अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों मानता है और उसके प्रति आजीवन वन्दना करने का संकल्प लेता है। वह भारत को अपनी जननी (मां) के समान पूजनीय बताता है और कहता है कि हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को उसके सम्मान में अर्पित करेंगे।
कवि भारत की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहता है कि हिमालय उसका मुकुट है और सागर उसके चरणों में रत्न अर्पित कर रहा है। यह दृश्य भारत की भव्यता और समृद्धि का प्रतीक है। कवि अपने देश के लिए जीने और मरने की प्रतिज्ञा करता है तथा कहता है कि बिना देश के जीवन व्यर्थ है।
भारत की संस्कृति को कवि अजेय और दुर्जेय बताता है, जो आज भी अपने आदर्शों और मूल्यों के कारण विश्व में पूजनीय है। कवि कहता है कि हम इस संस्कृति की विजय पताका लेकर विश्व में चलेंगे और इसकी सुगंध को हर कोने में फैलाएँगे।
स्वतंत्रता के शाश्वत दीप की बात करते हुए कवि यह विश्वास व्यक्त करता है कि स्वतंत्रता का यह प्रकाश कभी नहीं बुझेगा, और हम इसे सदैव प्रज्वलित रखेंगे। यह दीपक हमारे विश्वास, साहस और त्याग का प्रतीक है।
पूरी कविता देशभक्ति, निडरता, त्याग और सांस्कृतिक गौरव से ओतप्रोत है। कवि का संदेश है कि हमें अपने देश की सेवा, रक्षा और सम्मान के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए, क्योंकि भारत केवल एक देश नहीं बल्कि हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारा गौरव है।

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