मदनमोहन मालवीय – सारांश
यह पाठ भारत के महान देशभक्त, समाजसेवी और शिक्षाविद् मदनमोहन मालवीय के जीवन से संबंधित है। महात्मा गांधी उन्हें “नररत्न” और स्वयं को उनका “पुजारी” कहते थे, क्योंकि मालवीय जी में मद (अहंकार) और मोह (लालसा) का लेशमात्र भी नहीं था। इसलिए लोग उन्हें “महामना” कहते थे।
मदनमोहन मालवीय जी का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। उनके पिता ब्रजनाथ व्यास राधाकृष्ण के भक्त और कथावाचक थे तथा माता मूना देवी बहुत सरल स्वभाव की थीं। बालक मदनमोहन की प्रारंभिक शिक्षा श्रीधर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में हुई जहाँ सनातन धर्म की शिक्षा दी जाती थी। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, परंतु माता ने अपने चाँदी के कड़े गिरवी रखकर उनकी फीस भरी। आगे चलकर उन्होंने उसी प्रयाग में प्रसिद्ध काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की, जहाँ हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा मिली।
शिक्षा पूर्ण करने के बाद मालवीय जी ने अध्यापक के रूप में कार्य किया। उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1885 में कांग्रेस में शामिल हो गए। पत्रकारिता में उन्होंने ‘लीडर’ नामक अंग्रेजी दैनिक और ‘हिन्दुस्तान’ पत्र का संपादन किया। राजा रामपाल सिंह के आग्रह पर उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और हाईकोर्ट में वकालत शुरू की।
वकालत के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों को फाँसी से बचाने की थी। यह उनके न्याय, तर्क और साहस का परिचायक था। उनका सबसे महान कार्य था काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना (1916), जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति के साथ आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था। वे इसके उपकुलपति बनकर 20 वर्षों तक सेवा करते रहे।
मालवीय जी में देशप्रेम, सच्चाई, त्याग और चरित्र की अद्भुत भावना थी। वे कहते थे कि बच्चे के जीवन के पहले छह वर्ष उसके पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं। इसलिए उन्होंने युवकों के चरित्र निर्माण पर विशेष ध्यान दिया। वे चाहते थे कि हर छात्र सच्चरित्र, तेजस्वी, वीर और समाज के कल्याण में समर्थ बने।
उन्होंने हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष प्रयास किए। अदालतों में हिन्दी का प्रयोग करवाया और बड़े-बड़े सभाओं में हिन्दी में भाषण देते थे। वे सादगी, मेहनत और विनम्रता के प्रतीक थे—अपनी कीर्ति से हमेशा दूर रहना पसंद करते थे।
अत्यंत साधारण परिवार में जन्म लेकर उन्होंने ऊँचा स्थान प्राप्त किया और देश की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा देशभक्त वही है जो दूसरों के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करे और देश की उन्नति में योगदान दे।

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