बाथरूम की फिसलन – सारांश
यह पाठ एक हास्य-व्यंग्य है, जिसे डॉ. संतोष कुमार तिवारी ने लिखा है। इसमें लेखक ने अपने बाथरूम में फिसलकर पैर टूटने की घटना को मज़ेदार ढंग से प्रस्तुत किया है। वे बताते हैं कि कैसे एक छोटी-सी दुर्घटना ने उन्हें दर्द, परेशानी और हास्य – तीनों का अनुभव कराया। लोग उनकी हालत पर मज़ाक करते हैं, फिर भी वे हर बात में हँसी ढूँढ़ लेते हैं।
फिसलने के बाद लेखक को मित्रों और छात्रों से तरह-तरह की बातें सुननी पड़ीं, पर उन्होंने सबको हँसी में टाल दिया। डॉक्टर का पोर्टेबल एक्स-रे मशीन लाना, दोस्तों का मज़ाक करना और कवियों का बेहोश करने के लिए कविता सुनाने की बात – ये सब व्यंग्यात्मक घटनाएँ पाठ को रोचक बनाती हैं।
अंत में लेखक कहते हैं कि हड्डी टूटना बड़ी बात नहीं है, असली बात यह है कि मनोबल न टूटे। यह रचना हमें सिखाती है कि मुश्किल समय में भी हास्यभाव बनाए रखना चाहिए, क्योंकि हँसी और आत्मविश्वास से हर कठिनाई आसान हो जाती है।

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