साहस – सारांश
इस पाठ में लेखक ने साहस के महत्व और उसके विभिन्न रूपों को स्पष्ट किया है। संसार में कोई भी बड़ा या छोटा कार्य साहस के बिना संभव नहीं होता। सभी महापुरुष अपने साहस के बल पर ही महान बने। लेखक ने साहस को तीन श्रेणियों में बाँटा है – नीच, मध्यम और सर्वोच्च। नीच श्रेणी का साहस वह होता है जो क्रोध या स्वार्थ से प्रेरित होकर किया जाता है, जैसे चोरों या डाकुओं का साहस। मध्यम श्रेणी का साहस वीरता तो दिखाता है, परंतु उसमें ज्ञान और विवेक की कमी होती है। सर्वोच्च श्रेणी का साहस सबसे श्रेष्ठ माना गया है, जिसमें शारीरिक बल नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता, चरित्र की दृढ़ता, कर्त्तव्यपरायणता और निःस्वार्थ भावना आवश्यक होती है। लेखक ने बुद्धन सिंह के उदाहरण से बताया है कि सच्चा साहसी व्यक्ति वही है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने देश और समाज के प्रति कर्त्तव्य निभाता है। सत्साहसी व्यक्ति दूसरों के दुःख को दूर करने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता और हर परिस्थिति में धर्म और कर्त्तव्य का पालन करता है। लेखक ने यह संदेश दिया है कि सच्चा साहस वही है जो निःस्वार्थ होकर कर्त्तव्य के प्रति समर्पण और मानवता के कल्याण के लिए प्रेरित करे।

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