जनपदों और महाजनपदों का युग
जनपद और महाजनपद
- आर्य लोग धीरे-धीरे गंगा के उपजाऊ मैदानों में बस गए।
- उन्होंने जंगल साफ करके खेती के लिए भूमि तैयार की और बसावट की।
- इन बस्तियों को जनपद कहा गया।
- जनपद का अर्थ है – मनुष्य के बसने का क्षेत्र।
- जनपदों के नाम उनके संस्थापक जन या कुल के नाम पर रखे गए।
- महाभारत में अनेक जनपदों का उल्लेख मिलता है।
महाजनपद
- बड़े और शक्तिशाली जनपदों को महाजनपद कहा जाता था।
- इनके अधीन कई छोटे जनपद भी होते थे।
प्रमुख 16 महाजनपद:
अंग, मगध, काशी, कौशल, वज्जि, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवंति, चेदी, गंधार, कांबोज आदि।
- अवंति के दो भाग थे –
- उत्तर भाग की राजधानी उज्जयिनी
- दक्षिण भाग की राजधानी महिष्मती (मान्धाता)
- चेदी की राजधानी शुक्तिमती थी।
आज के मध्यप्रदेश में अवंति और चेदी जनपद थे।अवंति का राजा चण्डप्रद्योत था। उसकी बेटी वासवदत्ता का विवाह काशी के राजा उदयन से हुआ था।
गणसंघ (Republics)
- कुछ राज्यों में वंशानुगत राजा नहीं होते थे।
- वहाँ जनता राजा को चुनती थी – जैसे आज हम सरकार चुनते हैं।
- ऐसे राज्यों को गणसंघ कहा जाता था।
- प्रमुख गणसंघ –
- वज्जि (मिथिला)
- शाक्य (कपिलवस्तु)
- मल्ल (पावा)
जनपदों और महाजनपदों में राजा वंशानुगत होता था,जबकि गणसंघों में राजा जनता द्वारा चुना जाता था।
जनपदों और महाजनपदों के बीच संबंध
- इन राज्यों के बीच वैवाहिक संबंध होते थे।
- परंतु साम्राज्य विस्तार के लिए युद्ध भी होते रहते थे।
- धीरे-धीरे 16 महाजनपदों में से चार प्रमुख और शक्तिशाली बने –अवंति, मगध, कोसल, वत्स।
- अंत में मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया।
मगध साम्राज्य की स्थापना और विस्तार (544 ई.पू.-430 ई.पू.)
- मगध को साम्राज्य में विकसित करने का श्रेय हर्यंक वंश के राजा बिंबिसार को जाता है।
- उसने अंग को जीतकर अपने राज्य में मिलाया।
- वैवाहिक संबंधों से कोसल, वैशाली और मद्रकुल से संबंध बनाए।
- वह अवंति को जीत नहीं सका, इसलिए चण्डप्रद्योत से मित्रता कर ली।
- मगध की राजधानी राजगीर (गिरिव्रज) थी।
- उसका राजवैद्य जीवक था।
अजातशत्रु
- अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या कर सिंहासन प्राप्त किया।
- उसने आक्रामक नीति अपनाई और नए युद्ध यंत्रों का प्रयोग किया।
- महाशिलाकंटक – पत्थर फेंकने का यंत्र।
- रथमूसल – गदा से लैस युद्ध रथ।
- उसने साम्राज्य को उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में छोटा नागपुर तक फैला दिया।
- उसने गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र (पटना) को नई राजधानी बनाया।
मगध और अवंति के युद्ध
- मगध का सबसे बड़ा शत्रु अवंति महाजनपद (उज्जैन) था।
- कई संघर्षों के बाद शिशुनाग वंश के राजाओं ने अवंति को जीत लिया।
- इसके बाद अवंति मगध साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
मगध साम्राज्य की उन्नति के कारण
- भूमि उपजाऊ थी – फसलें अधिक उगती थीं।
- क्षेत्र में लोहे के भंडार थे – उन्नत औज़ार और हथियार बने।
- गंगा नदी से व्यापार होता था, जिससे व्यापारी दूर-दूर तक आते थे।
- राजधानी राजगीर और पाटलिपुत्र सुरक्षित नगर थे।
- मगध सेना के पास नए युद्ध यंत्र और सबसे बड़ी हाथी सेना थी।
शिशुनाग वंश
- शिशुनाग पहले काशी का शासक था।
- उसने नागदासक को हटाकर अपना वंश स्थापित किया।
- राजधानी वैशाली बनाई।
- उसकी सबसे बड़ी सफलता – अवंति के राजा को पराजित कर उज्जैन पर अधिकार।
- लगभग 100 वर्षों बाद अवंति को मगध साम्राज्य में शामिल किया गया।
नन्द वंश (363 ई.पू. – 342 ई.पू.)
- नन्द वंश का संस्थापक महापद्म नन्द (उग्रसेन) था।
- वह साहसी, योग्य और महत्वाकांक्षी राजा था।
- उसके पास अपार धन था, इसलिए उसे “महापद्म नन्द” कहा गया।
- उसने साम्राज्य को बहुत विस्तारित किया।
नन्द काल में सिकन्दर का भारत पर आक्रमण (326 ई.पू.)
- सिकन्दर मकदूनिया (यूनान) का राजा था।
- उसने भारत पर आक्रमण किया और पंजाब के कुछ भागों पर कब्जा किया।
- लेकिन मगध की शक्ति देखकर उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया।
- वह व्यास नदी से लौट गया।
परिणाम:
- भारत और यूनान के बीच व्यापार और संपर्क बढ़ा।
- सिकन्दर के साथ आए यात्रियों ने भारत का भौगोलिक वर्णन किया।
नन्द की सेना -20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2,000 रथ और 4,000 हाथी।
- अंतिम शासक घनानन्द था।
- उसका वध कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
राजनैतिक व प्रशासनिक जीवन
- राजा बहुत शक्तिशाली था।
- प्रशासन में कई अधिकारी होते थे:
- आमात्य (मंत्री)
- पुरोहित (धर्मगुरु)
- संग्रहत्री (कोषाध्यक्ष)
- बलिसाधक (कर वसूलने वाला)
- शौल्किक (चुंगी अधिकारी)
- सेनापति और ग्रामीण
- ब्राह्मण सलाहकार परिषद में शामिल होते थे।
- योद्धा और पुरोहित कर से मुक्त थे।
- किसानों से उपज का छठा भाग कर के रूप में लिया जाता था।
- व्यापारियों से चुंगी (टैक्स) लिया जाता था।
सिक्के –
- ताँबे और चाँदी के बने होते थे।
- इन्हें आहत (पंचमार्क) सिक्के कहा जाता था।
प्रमुख नगर -उज्जयिनी, श्रावस्ती, अयोध्या, काशी, कौशाम्बी, चंपा, राजगीर, वैशाली, प्रतिष्ठान, भृगुकच्छ।
- मकान मिट्टी और पकी ईंटों के होते थे।
- नगर के चारों ओर प्राचीर और विशाल द्वार होते थे।
सामाजिक और धार्मिक जीवन
- समाज में चार वर्ण थे, पर नई जातियाँ भी बन गईं -बढ़ई, लुहार, सुनार, तेली, शराब बनाने वाले आदि।
- जाति जन्म से निर्धारित होती थी।
- शिल्पकारों के संगठन को “श्रेणी” कहा जाता था।
धार्मिक परिवर्तन:
- लोग खर्चीले यज्ञों और कर्मकांडों से ऊब गए।
- इस समय दो नए धर्मों का उदय हुआ –
- जैन धर्म (महावीर स्वामी)
- बौद्ध धर्म (गौतम बुद्ध)
महावीर स्वामी (जैन धर्म)
- जन्म – वैशाली गणराज्य में।
- वे 24वें तीर्थंकर थे।
- 30 वर्ष की आयु में घर छोड़कर साधना की।
- 12 वर्ष की तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त किया।
- 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में देहावसान हुआ (527 ई.पू.)।
मुख्य शिक्षाएँ:
- अहिंसा – किसी प्राणी को हानि न पहुँचाना।
- सत्य – हमेशा सत्य बोलना।
- अस्तेय – चोरी न करना।
- अपरिग्रह – संग्रह न करना।
- ब्रह्मचर्य – संयम का पालन करना।
गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म)
- बचपन का नाम – सिद्धार्थ।
- जन्म – लुंबिनी (नेपाल का तराई क्षेत्र)।
- 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया।
- 7 वर्ष की साधना के बाद बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद वे “बुद्ध” (प्रज्ञावान) कहलाए।
- 483 ई.पू. में कुशीनगर में देहावसान हुआ।
मुख्य शिक्षाएँ:
- दुख का कारण तृष्णा (इच्छा) है।
- तृष्णा से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।
- अष्टांगिक मार्ग का पालन करें –
- शुद्ध विचार
- शुद्ध संकल्प
- शुद्ध वाणी
- शुद्ध व्यवहार
- शुद्ध जीवन
- शुद्ध उपाय
- शुद्ध ध्यान
- शुद्ध समाधि
- पाँच नैतिक नियम:
- हत्या न करें।
- चोरी न करें।
- झूठ न बोलें।
- मादक द्रव्यों का सेवन न करें।
- व्यभिचार न करें।
आगे चलकर –
- बौद्ध धर्म एशिया के देशों में फैला।
- जैन धर्म भारत के अनेक क्षेत्रों में प्रचलित हुआ।
महत्वपूर्ण बिंदु
- जनपद – मनुष्य के बसने का क्षेत्र।
- महाजनपद – बड़े और शक्तिशाली जनपद।
- गणसंघ – जनता द्वारा चुने गए शासक वाले राज्य।
- मगध – सबसे शक्तिशाली महाजनपद।
- बिंबिसार, अजातशत्रु, शिशुनाग, नंद – प्रमुख मगध शासक।
- सिकन्दर का आक्रमण – 326 ई.पू. में।
- आहत सिक्के – ताँबे और चाँदी के पंचमार्क सिक्के।
- महावीर स्वामी – अहिंसा और सत्य के उपदेशक।
- गौतम बुद्ध – अष्टांगिक मार्ग और मध्यम मार्ग के प्रवर्तक।
- दोनों धर्मों ने समाज में नैतिकता, सरलता और मानवता का संदेश दिया।

Leave a Reply