पारस्परिक निर्भरता
सीखने योग्य बातें
- पारस्परिक निर्भरता क्या है?
- समुदाय को पारस्परिक निर्भरता की आवश्यकता क्यों होती है?
- ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे पर कैसे निर्भर हैं?
- नागरिक जीवन में परस्पर निर्भरता का क्या महत्व है?
पारस्परिक निर्भरता का अर्थ
- पारस्परिक निर्भरता का अर्थ है – जब एक व्यक्ति, समूह या क्षेत्र अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे व्यक्ति, समूह या क्षेत्र पर निर्भर होता है।
- सरल शब्दों में – किसी कार्य या आवश्यकता के लिए एक का दूसरे पर निर्भर होना पारस्परिक निर्भरता कहलाता है।
प्राचीन काल में निर्भरता
- प्राचीन काल में मनुष्य की आवश्यकताएँ बहुत सीमित थीं।
- वह अपनी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं कर लेता था।
- जैसे-जैसे मनुष्य विकसित होता गया, उसकी जरूरतें बढ़ती गईं।
- अब अपनी सभी जरूरतें खुद पूरी करना संभव नहीं रहा, इसलिए वह दूसरों पर निर्भर होने लगा।
आवश्यकताओं में विविधता
- मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं – भोजन, वस्त्र और आवास।
- जब इन आवश्यकताओं में विविधता और वृद्धि आई, तब पारस्परिक निर्भरता की जरूरत बढ़ी।
- जैसे –
- भोजन में स्वाद और पकाने के अलग-अलग तरीके,
- कपड़ों में भिन्नता,
- घरों और झोपड़ियों के रूप में आवास की विविधता।
- इन सबके कारण हर व्यक्ति अपनी जरूरतें स्वयं पूरी नहीं कर सका, इसलिए दूसरों की मदद लेने लगा।
गाँव और शहर के बीच पारस्परिक निर्भरता
गाँव के लोग शहर पर निर्भर:
- गाँव के लोग शहरों में बनी चीज़ें लेते हैं, जैसे –
- साइकिल, रेडियो, कपड़ा, औज़ार, मशीनें, दवाइयाँ आदि।
शहर के लोग गाँव पर निर्भर:
- शहर के लोग गाँव से प्राप्त वस्तुओं पर निर्भर हैं, जैसे –
- अनाज, सब्जियाँ, फल, दूध, घी, कपास, दालें आदि।
उदाहरण:कोलीखेड़ा गाँव से कपास, दूध, गेहूँ, चना जैसी चीज़ें खैरतगढ़ शहर में जाती हैं।और खैरतगढ़ से साइकिल, रेडियो, कपड़ा, फैक्ट्री में बनी वस्तुएँ कोलीखेड़ा गाँव में आती हैं।
इस प्रकार गाँव और शहर दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र पर निर्भरता
- किसी एक क्षेत्र में सभी प्रकार की चीजें उपलब्ध नहीं होतीं।
- जैसे – हर जगह सभी फसलें नहीं उगाई जा सकतीं।
- साबुन एक जगह बनता है, खाद कहीं और तैयार होती है।
- इसलिए वस्तुओं का आदान-प्रदान (एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भेजना) आवश्यक होता है।
- इस प्रकार एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र पर निर्भर हो जाता है।
उदाहरण:
- गाँव से कृषि उत्पाद शहरों में जाते हैं।
- शहरों से उद्योगों में बनी वस्तुएँ गाँवों में आती हैं।
- इसी तरह विभिन्न शहर और प्रदेश भी एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
दो देशों के बीच पारस्परिक निर्भरता
- कोई भी देश अपनी सभी आवश्यकताओं की वस्तुएँ स्वयं नहीं बना सकता।
- इसलिए देश एक-दूसरे से वस्तुओं का लेन-देन करते हैं।
उदाहरण:
- भारत दूसरे देशों से पेट्रोलियम पदार्थ, मशीनें, हथियार आदि मंगाता है।
- भारत दूसरे देशों को मसाले, चाय, सीमेंट, तैयार कपड़े आदि भेजता है।
इस तरह देशों के बीच भी पारस्परिक निर्भरता होती है।
नागरिक जीवन में परस्पर निर्भरता
- हम सब भारत के नागरिक हैं।
- परिवार, पड़ोस, विद्यालय, कस्बे और गाँव – सब एक-दूसरे पर सहयोग के लिए निर्भर हैं।
- हर व्यक्ति दूसरों की सहायता करता है और दूसरों से सहायता प्राप्त करता है।
उदाहरण:
- परिवार में – माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी एक-दूसरे का सहारा हैं।
- विद्यालय में – प्रधानाध्यापक, शिक्षक, विद्यार्थी, भृत्य सभी मिलकर विद्यालय का संचालन करते हैं।
- पड़ोस में – लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं।
इस प्रकार हमारा सामाजिक जीवन आपसी सहयोग पर आधारित है।
कर्तव्य और सहयोग का महत्व
- नागरिक जीवन आपसी सहयोग और कर्तव्य पालन पर निर्भर करता है।
- हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
- विद्यालय, परिवार और समाज – तीनों में नियमों का पालन करना आवश्यक है।
- जब सब मिलकर अपने-अपने कार्य नियमपूर्वक करते हैं, तब समाज और देश सुव्यवस्थित और प्रगतिशील बनते हैं।

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