लेखक: डॉ. जयकुमार जलज
उद्देश्य (आइए सीखें)
माँ से विभिन्न गुणों और शील की प्रार्थना करना।
कविता के भाव को समझना।
कविता को भाव, लय और हाव-भाव के साथ पढ़ना।
पर्यायवाची और विलोम शब्दों का ज्ञान प्राप्त करना।
कविता का सारांश
यह कविता एक प्रार्थना है जिसमें कवि माँ (ईश्वर या माता) से प्रेरणा, शक्ति, और अच्छे गुणों की माँग करता है। कवि चाहता है कि वह तन, मन, और बुद्धि से मजबूत बने, कठिनाइयों का सामना हिम्मत से करे, और दूसरों की मदद करे। वह अपने भाग्य को अपने हाथों में लेना चाहता है, मुसीबतों को दूर करना चाहता है, और दूसरों के लिए प्रेरणा बनना चाहता है। कविता में दया, करुणा, और साहस जैसे गुणों की बात की गई है।
कविता की पंक्तियाँ और उनका अर्थ
1. तन से, मन से और बुद्धि से हम सब बहुत बड़े हों
कवि प्रार्थना करता है कि हम शारीरिक, मानसिक, और बौद्धिक रूप से मजबूत और महान बनें।
2. पर्वत-से हों, सिर ऊँचा कर सीना तान खड़े हों
हम पर्वत की तरह अडिग और मजबूत हों, गर्व से सिर ऊँचा करें और हिम्मत से खड़े रहें।
3. कोई कठिन काम हो भारी, हम करके दिखला दें
कोई भी मुश्किल काम आए, हम उसे पूरा करके दिखाएँ।
4. आँधी से हों, मुसीबतों को बादल-सा बिखरा दें
हम आँधी की तरह ताकतवर हों और मुसीबतों को बादलों की तरह हटा दें।
5. मुट्ठी में तकदीरें बाँधे, हँस कर चलने वाले
हम अपने भाग्य को अपने नियंत्रण में रखें और हँसते-हँसते जीवन जिएँ।
6. अँधियारे में किसी-दिए की लौ-से जलने वाले
हम अंधेरे में दीपक की लौ की तरह दूसरों के लिए रोशनी बनें।
7. प्यासे को देखें तो हम सब सावन-से घिर आएँ
जब कोई जरूरतमंद हो, हम सावन की बारिश की तरह उसकी मदद के लिए आएँ।
8. सागर में ही नहीं, हथेली गागर में भर जाएँ
हम सागर की तरह विशाल हों और छोटी-सी गागर (हथेली) में भी समृद्धि भर दें।
9. थके हुए के लिए हवा की तरह सदैव बहें हम
हम थके हुए लोगों के लिए ताजगी देने वाली हवा की तरह हमेशा मदद करें।
10. धरती-से हाँ, अपने सुख-दुख को चुपचाप सहें हम
हम धरती की तरह धैर्यवान हों और अपने सुख-दुख को चुपचाप सहन करें।
11. उठे हमारा हाथ, दीन दुखियों का दुख हरने को
हमारा हाथ हमेशा गरीब और दुखियों की मदद के लिए उठे।
12. रहे न फुरसत, बैठें आँखों में आँसू भरने को
हमारे पास इतना समय न हो कि हम रोने या निराश होने के लिए बैठें।
13. माँ! इन नन्हे हाथों को बस यह प्रसाद दो अपना
कवि माँ से प्रार्थना करता है कि इन छोटे हाथों को अच्छे कर्म करने की शक्ति दे।
14. ये उस तक भी पहुँचे, जिसको सब कहते हों सपना
ये हाथ उन लक्ष्यों तक पहुँचें, जिन्हें लोग असंभव या सपना मानते हैं।
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