लेखक: पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
उद्देश्य (आइए सीखें)
- समाज के संगठन का महत्व समझना।
- परोपकार की भावना का विकास करना।
- निबंध विधा से परिचय प्राप्त करना।
- विलोम शब्दों का ज्ञान प्राप्त करना।
- विशेषण और उनके प्रकारों को समझना।
निबंध का सारांश
यह निबंध समाज-सेवा और इसके महत्व के बारे में बताता है। मनुष्य अकेला नहीं रह सकता, इसलिए वह समाज बनाता है। मनुष्य अपनी बुद्धि से समाज को बेहतर बनाता है और समय के साथ इसमें बदलाव करता है। समाज में समता (बराबरी) जरूरी है, क्योंकि असमानता से ईर्ष्या और द्वेष पैदा होता है, जो समाज को कमजोर करता है। समाज और व्यक्ति एक-दूसरे पर निर्भर हैं। समाज-सेवा का अर्थ है दूसरों का दुख दूर करना और उन्हें सुख देना। यह सेवा किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि अधिकांश लोगों के लिए होनी चाहिए। समाज में स्थिरता और बदलाव दोनों जरूरी हैं। समाज के नियमों का पालन करना जरूरी है, लेकिन अगर उनमें दोष आ जाए, तो समाज सुधारकों को नई मर्यादा बनानी पड़ती है। समाज-सेवा से समाज और व्यक्ति दोनों की उन्नति होती है।
निबंध की मुख्य बातें
1. मनुष्य और समाज:
- मनुष्य अकेला नहीं रह सकता, इसलिए वह समाज बनाता है।
- अन्य प्राणी भी समूह में रहते हैं, लेकिन मनुष्य अपनी बुद्धि से समाज को उन्नत बनाता है।
- समय और परिस्थितियों के अनुसार समाज में बदलाव होते हैं।
2. समाज में समता का महत्व:
- समता (बराबरी) के बिना समाज कमजोर होता है।
- असमानता से ईर्ष्या, द्वेष, और फूट पैदा होती है, जिससे समाज की अवनति होती है।
3. समाज और व्यक्ति का संबंध:
- समाज और व्यक्ति एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
- समाज की उन्नति से व्यक्ति की उन्नति और व्यक्ति की उन्नति से समाज की उन्नति होती है।
4. स्वार्थ और परार्थ:
- मनुष्य में स्वार्थ और परार्थ (दूसरों के लिए सोचने की भावना) दोनों होते हैं।
- दया, प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, त्याग, और सेवा जैसे गुण परार्थ-बुद्धि से आते हैं।
- परार्थ-चिंतन से मनुष्य को सुख और संतोष मिलता है।
5. समाज-सेवा का अर्थ:
- समाज-सेवा का मतलब है दूसरों का दुख दूर करना और उन्हें सुख देना।
- किसी एक व्यक्ति की सेवा भी समाज-सेवा है, लेकिन यथार्थ समाज-सेवा अधिकांश लोगों को सुख देने के लिए होती है।
6. समाज में स्थिरता और परिवर्तन:
- समाज को नियमों और मर्यादाओं का पालन करना चाहिए।
- अगर नियमों में दोष आ जाए, तो समाज सुधारक नई मर्यादा बनाते हैं, जिसके लिए उन्हें कष्ट सहना पड़ता है।
7. समाज-सेवा के उदाहरण:
- गरीबों का उत्थान, नारियों की स्थिति सुधारना, और रोगग्रस्त लोगों की मदद करना समाज-सेवा है।
- नवयुवकों को ऐसी सेवाओं में भाग लेना चाहिए।
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