कवि: भवानीप्रसाद मिश्र
उद्देश्य (आइए सीखें)
- विषम परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त करना।
- तत्सम शब्दों की समझ विकसित करना।
- मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग सीखना।
- प्रेरणा-गीत गाने की रुचि जागृत करना।
कविता का सारांश
यह कविता उत्साह और जोश से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। कवि कहते हैं कि जीवन की मुश्किलों (लहरों और लपटों) में भी लगातार चलते रहना चाहिए। फिसड्डी रहकर या दूसरों की सहायता पर जीना शर्म की बात है। महूरत या भाग्य का इंतजार न करें, बल्कि उत्साह से आगे बढ़ें। अतीत की शान पर अभिमान न करें, बल्कि जमाने के साथ बदलें।
कविता की पंक्तियाँ और उनका अर्थ
1. चलते चलो और चलते चलो, लहरों में, लपटों में पलते चलो।
- जीवन में लगातार आगे बढ़ते रहो, मुश्किलों और कष्टों में भी जीते रहो।
2. फिसड्डी रहे और जीते रहे, किसी का दिया दूध पीते रहे, तो इससे बुरी जिंदगी कौन-सी? बड़ी और शर्मिंदगी कौन-सी?
- पीछे रहकर या दूसरों की सहायता पर जीना सबसे बुरी जिंदगी है, इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है?
3. ये आराम छोड़ो, उबलते चलो, लहरों में, लपटों में पलते चलो।
- आराम छोड़ो, जोश से आगे बढ़ो, जीवन की मुश्किलों में भी पलते रहो।
4. भला यात्रा का महूरत भी है, कहीं बैठ रहने की सूरत भी है, निकलता चला जा रहा है समय, महूरत न सोचो मचलते चलो।
- जीवन की यात्रा में शुभ मुहूर्त या रुकने की कोई जगह नहीं है, समय निकलता जा रहा है, मुहूर्त न सोचो, जिद से आगे बढ़ो।
5. कभी तुम शेर थे, ठीक है, उसी ख्याल में डूबना लीक है, जमाना कहाँ से कहाँ जा चुका, जरा भाग अपना बदलते चलो।
- तुम पहले शक्तिशाली थे, ठीक है, लेकिन उस विचार में डूबना पुरानी परंपरा है, जमाना बहुत आगे निकल गया है, अपना भाग्य बदलते चलो।
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