प्रार्थना – सारांश
इस अध्याय “मेरी भावना” नामक कविता पर आधारित है, जिसमें कवि अपनी अच्छी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। कविता में कहा गया है कि व्यक्ति को अहंकार, क्रोध और ईर्ष्या से दूर रहना चाहिए। वह सरल और सत्य व्यवहार करे, दूसरों की मदद करे, सभी जीवों से मैत्री रखे, दीन-दुखी पर करुणा करे, दुर्जनों पर भी साम्य भाव रखे, गुणीजनों की सेवा करे, कृतघ्न न बने, न्याय के मार्ग से कभी न डिगे और जगत में प्रेम फैलाए। यह कविता दृढ़ निश्चय, साहस जैसे नैतिक मूल्यों की बात करती है। इसमें अनुप्रास अलंकार का ज्ञान दिया गया है, जैसे सरल-सत्य में ‘स’ की आवृत्ति। साथ ही समान उच्चारण वाले शब्दों में अर्थ-भेद और विलोम शब्दों की जानकारी है। अध्याय में व्याकरण का भाग भी है, जहाँ क्रिया के काल के बारे में बताया गया है। काल वह है जो क्रिया के होने के समय को बताता है और इसके तीन भेद हैं: भूतकाल (जैसे- उसने पुस्तकें पढ़ी), वर्तमानकाल (जैसे- राधा नाच रही है) और भविष्यकाल (जैसे- श्याम पाठ पढ़ेगा)। अंत में वाक्यों में क्रियाओं को दिए गए काल के अनुसार बदलने का अभ्यास दिया गया है, जैसे ‘सभी बच्चे खुश हैं’ को भूतकाल में बदलना।
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