प्रार्थना – सारांश
इस अध्याय में डॉ. जयकुमार जलज की कविता “प्रार्थना” दी गई है। इसमें कवि माँ से अपने और सभी बच्चों के लिए शक्ति, साहस और सद्गुणों की याचना करता है। कवि चाहता है कि हम तन, मन और बुद्धि से बड़े बनें, पर्वत की तरह सिर ऊँचा करके सीना तानकर खड़े हों। कोई भी कठिनाई या संकट आए, तो हम उसका सामना आँधी की तरह कर सकें और बादल की तरह मुसीबतों को बिखेर दें। कवि प्रार्थना करता है कि हम भाग्य को अपनी मुट्ठी में बाँधकर, हँसते हुए आगे बढ़ें और अंधकार में दीपक की लौ की तरह जलकर दूसरों को राह दिखाएँ। वह चाहता है कि हम प्यासों को सावन की तरह तृप्त करें, न केवल सागर में, बल्कि अपनी हथेली की गागर में भी जल भर दें। साथ ही, हम धरती की तरह अपने सुख-दुख को सहें और हवा की तरह थके हुए लोगों को शांति व ताजगी दें। कवि माँ से यह भी माँग करता है कि नन्हें हाथों को ऐसा प्रसाद मिले, जिससे वे हर उस व्यक्ति तक पहुँच सकें, जिसकी मदद करना केवल एक सपना माना जाता है। इस प्रकार, यह कविता हमें करुणा, साहस, सेवा, सहनशीलता और मानवता का संदेश देती है।
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