प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “सुभाषचन्द्र बोस का पत्र” नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा एन.सी. केलकर को लिखे गए अनौपचारिक पत्र पर आधारित है, जो 20 अगस्त 1925 को माण्डले सेंट्रल जेल, बर्मा से लिखा गया। पत्र में सुभाष बाबू बताते हैं कि वे जनवरी से जेल में हैं और उन्हें याद आया कि लोकमान्य तिलक ने भी इसी जेल में समय बिताया था, जहाँ उन्होंने ‘गीता भाष्य’ लिखा, जिसे सुभाष शंकर और रामानुज जैसे भाष्यकारों के समकक्ष मानते हैं। वे जेल के कठिन परिवेश का वर्णन करते हैं, जैसे लकड़ी के तख्तों का वार्ड, गर्मी, बारिश और सर्दी की परेशानियाँ। सुभाष अपने देशवासियों के लिए स्वतंत्रता और युगनिर्माण की बात करते हैं, जो उनके पत्र में देशप्रेम और दृढ़ता को दर्शाता है। अध्याय में औपचारिक और अनौपचारिक पत्रों का अंतर समझाया गया है; अनौपचारिक पत्र मित्रों-रिश्तेदारों को लिखे जाते हैं, जबकि औपचारिक पत्र अधिकारियों को, जिनमें पद, पता, दिनांक और विषय वस्तु शामिल होती है। व्याकरण में उपसर्ग (जैसे संन्यासी में ‘सं’), प्रत्यय (जैसे वीरता में ‘ता’) और समास (जैसे कर्मयोग, चहारदीवारी) के भेद सिखाए गए हैं। अभ्यास में समास का विग्रह, वाक्य बनाना और शुल्क मुक्ति के लिए औपचारिक पत्र लिखना शामिल है। योग्यता विस्तार में लोकमान्य तिलक की जीवनी पढ़ना, स्वतंत्रता सेनानी पर मित्र को पत्र लिखना और चितरंजनदास की जानकारी इकट्ठा करना सिखाया गया है। अंत में कहा गया है कि धैर्य और विश्वास से पर्वतों और पत्थरों को भी जीता जा सकता है।
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