प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “वात्सल्य के पद” सूरदास की दो कविताओं पर आधारित है, जो वात्सल्य रस को दर्शाती हैं। पहली कविता में बालक कृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि दाऊ (बलराम) उन्हें चिढ़ाते हैं, पूछते हैं कि गोरे नन्द-यशोदा के श्याम पुत्र कैसे हैं। ग्वाल और बलराम हँसते हैं, जिससे कृष्ण नाराज़ हैं, पर यशोदा यह सुनकर रीझती हैं और कहती हैं कि कृष्ण उनकी गोधन की सौगंध हैं। दूसरी कविता में कृष्ण माँ से माखन माँगते हैं, मेवा-पकवान उन्हें पसंद नहीं। ग्वालिनें उनकी बात सुनकर मन ही मन चाहती हैं कि कृष्ण उनके घर माखन खाएँ। सूरदास प्रभु को अंतर्जामी बताते हैं, जो ग्वालिनों के मन की बात जानते हैं। सूरदास को वात्सल्य रस का अद्वितीय कवि कहा गया है। अध्याय में रस की परिभाषा दी गई है, जो कविता पढ़ने से मिलने वाला आनंद है। रस के दस प्रकार और उनके स्थायी भाव बताए गए हैं, जैसे वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल (स्नेह) है, जो माता-पुत्र या गुरु-शिष्य के स्नेह में दिखता है। अभ्यास में कविता का भावार्थ, प्रश्नोत्तर, अनुप्रास अलंकार (जैसे मोहन-मुख) और वात्सल्य रस का उदाहरण देना शामिल है। योग्यता विस्तार में अन्य कवियों की वात्सल्य रस की रचनाएँ, सूरदास-रसखान के पद, भक्तिकालीन कवियों की जानकारी और विभिन्न रसों की कविताएँ संकलित करना सिखाया गया है। अंत में कहा गया है कि बालक की पहली गुरु माता होती है।6.4s
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