प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “नींव का पत्थर” एक एकांकी है, जो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के स्वाभिमान, देशभक्ति और आत्मोत्सर्ग की भावना को दर्शाता है। रंगमंच पर युद्धभूमि का दृश्य है, जहाँ लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही के साथ स्वराज्य की लड़ाई में चुनौतियों का सामना करती हैं। वे झाँसी, कालपी, ग्वालियर तक की यात्रा में स्वराज्य को पास देखती हैं, लेकिन हर बार बाधाएँ आती हैं। रघुनाथराव बताते हैं कि जनरल ह्यूरोज ने पेशवा की सेना को हरा दिया, जिससे लक्ष्मीबाई और जूही चिंतित होती हैं। फिर भी, लक्ष्मीबाई हार नहीं मानतीं और देश के लिए लड़ने की प्रतिज्ञा दोहराती हैं। तात्या और रामचन्द्र जैसे सहयोगी उनके साथ हैं, जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हैं। एकांकी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों का परिचय देती है। व्याकरण में मुहावरे (जैसे हिमालय अड़ जाना), लोकोक्तियाँ, विलोम शब्द (जैसे सफलता-विफलता), समास (जैसे देशभक्त-देश के लिए भक्ति) और प्रश्नवाचक शब्दों (कौन, कहाँ) से बने वाक्य सिखाए गए हैं। अभ्यास में संवादों का हाव-भाव से वाचन, विलोम शब्द, मुहावरों का प्रयोग, समास विग्रह और लोकोक्ति समझना शामिल है। योग्यता विस्तार में सुभद्राकुमारी चौहान की लक्ष्मीबाई पर कविता सुनाना, देशप्रेमी संवाद लिखना और अन्य वीरांगनाओं के चित्र संकलन करना सिखाया गया है। अंत में कहा गया है कि विजय ध्येय की प्राप्ति में नहीं, बल्कि उसके लिए निरंतर प्रयास में है।
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