प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “अगर नाक न होती” हास्य-व्यंग्य शैली में लिखा गया गद्य है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक विसंगतियों पर कटाक्ष करता है। लेखक मजाकिया अंदाज में कहते हैं कि नाक के कारण लोग अपनी और खानदान की इज्जत बचाने के लिए बेकार के खर्चे करते हैं, जैसे महंगे सामान खरीदना, दावतें देना, या मुकदमेबाजी करना। नाक जल्दी कटती है, जैसे कोई गलत काम होने पर, और नकटे लोग दूसरों को भी नकटा देखना चाहते हैं। जुकाम नाक में दम करता है, और नाक की सुंदरता को लेकर लोग परेशान रहते हैं। लेखक व्यंग्य करते हैं कि नाक न होती तो ये परेशानियाँ न होतीं। अध्याय में हिन्दी, उर्दू (जैसे खानदान, इलजाम) और अंग्रेजी शब्दों की पहचान, मुहावरों (जैसे नाकों चने चबाना), क्रिया परिवर्तन (जैसे भूतकाल, वर्तमानकाल), और शिष्ट मनोरंजन की समझ सिखाई गई है। अभ्यास में वाक्य पूरे करना, मुहावरे ढूँढना, जोड़ियाँ मिलाना, अपने शब्दों में लिखना, निबंध (मध्यप्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान, विज्ञान और जीवन) और अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र लिखना शामिल है। योग्यता विस्तार में मध्यप्रदेश के दर्शनीय स्थल, नदियाँ, और अन्य विषयों पर जानकारी इकट्ठा करना सिखाया गया है। अंत में यह संदेश है कि व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक कमियों को समझा और सुधारा जा सकता है।
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