प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “और भी दूँ” एक कविता है, जो राष्ट्रप्रेम और त्याग की भावना को जगाती है। कवि कहते हैं कि वे मातृभूमि को अपना मन, तन, जीवन, गान, प्राण, रक्त, स्वप्न और हर क्षण समर्पित करना चाहते हैं, फिर भी देश की धरती को और कुछ देना चाहते हैं। माँ (देश) का ऋण इतना बड़ा है कि वह अकिंचन (निर्धन) होने के बावजूद निवेदन करता है कि उसका समर्पण स्वीकार किया जाए। कवि तलवार, ढाल, और ध्वज लेकर मोह के बंधन तोड़ने और देश के लिए लड़ने को तैयार है। शिक्षण संकेत में बताया गया है कि कविता को लय-ताल और हाव-भाव के साथ पढ़ना चाहिए और बच्चों को मातृभूमि के ऋण का महत्व समझाना चाहिए। व्याकरण में शब्द प्रयोग, पर्यायवाची (जैसे फूल-सुमन, पृथ्वी-धरती), और अलंकार (जैसे अनुप्रास: माँज दो तलवार) सिखाए गए हैं। अभ्यास में कविता की पंक्तियाँ समझाना, पर्यायवाची छाँटना, अलंकार वाली पंक्तियाँ ढूँढना और रिक्त स्थान पूर्ति शामिल है। योग्यता विस्तार में देशप्रेम की अन्य कविताएँ सुनाना, देशप्रेम के चित्र चिपकाना और कविताएँ संग्रहीत करना सिखाया गया है। अंत में संदेश है कि माँ (देश) के बलिदानों का कोई बेटा पूरा प्रत्युपकार नहीं कर सकता, चाहे वह कितना भी बड़ा हो।
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