प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “लोकमाता: अहिल्याबाई” भारत की महान नारी अहिल्याबाई होलकर के जीवन और योगदान पर आधारित है। अध्याय की शुरुआत में बताया गया है कि उत्तर में केदारनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारका जैसे तीर्थ स्थलों पर अहिल्याबाई द्वारा बनवाई गई धर्मशालाएँ, कलश, कुएँ और बावड़ियाँ आज भी समान रूप से दिखाई देती हैं, जो पूरे भारत को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधती हैं। अहिल्याबाई का जन्म औरंगाबाद जिले के चौंदी गाँव में हुआ था और उन्होंने होलकर राज्य पर 29 वर्ष तक शासन किया। उनके शासन में प्रजा सुख-शांति और समृद्धि से भरी थी, और लोग उन्हें लोकमाता कहते थे। उनका जीवन संघर्षों और विपत्तियों से भरा था। अहिल्याबाई का विवाह मल्हारराव होलकर के पुत्र खाण्डेराव से हुआ, जो जिद्दी और अक्खड़ स्वभाव के थे, लेकिन अहिल्याबाई ने घरेलू कार्यों में कुशलता से सबका मन मोह लिया। अध्याय में साहस, उदारता, परोपकार, दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता और शौर्य जैसे गुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा दी गई है। गद्यांशों का मुखर और मौन वाचन, शब्दों का शुद्ध उच्चारण सिखाया गया है। व्याकरण में उपसर्ग (जैसे ‘सम’ उपसर्ग से समृद्धि), मुहावरों का वाक्य प्रयोग (जैसे छक्के छूटना) और लिंग परिवर्तन समझाया गया है, जैसे पुल्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में बदलना (शीलवान से शीलवती, बुद्धिमान से बुद्धिमती)। विभिन्न तरीकों से स्त्रीलिंग बनाने के उदाहरण दिए गए हैं, जैसे ‘इया’ लगाकर (वीर से वीरिया), ‘नी’ लगाकर (मालिक से मालकिन)। अभ्यास में शब्दों के स्त्रीलिंग रूप लिखने का कार्य है। योग्यता विस्तार में अहिल्याबाई जैसी अन्य वीरांगनाओं की कहानियाँ पढ़ना, उनके चित्र लगाना, भारत की अन्य महान महिलाओं के नाम लिखना और ‘अहल्या’ शब्द का अर्थ शब्दकोश से ढूँढना सिखाया गया है। अध्याय का अंतिम संदेश है कि नारी शक्ति और सहनशीलता की प्रतीक है।
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