प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “महान् वैज्ञानिक: डॉक्टर चन्द्रशेखर वेंकट रमण” भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. सी.वी. रमण के जीवन और योगदान पर आधारित है। 19वीं सदी में अंग्रेजों ने भारत में अच्छे कॉलेज बनाए, जैसे मद्रास (चेन्नई) का प्रेसीडेंसी कॉलेज, जहाँ आधुनिक विज्ञान पढ़ाया जाता था, जिससे कई भारतीय वैज्ञानिक बने। डॉ. रमण का जन्म 7 नवंबर 1888 को दक्षिण भारत के तिरुचिरापल्ली में हुआ। उनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर साधारण अध्यापक थे, जो बाद में विशाखापट्टनम के कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक बने, और माता का नाम पार्वती अम्मल था। रमण बचपन से बहुत प्रतिभाशाली थे; उन्होंने 12 साल की उम्र में हाईस्कूल प्रथम श्रेणी में पास किया और प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की, जहाँ वे सबके प्रिय बने। 16 साल में बी.ए. और 19 साल में एम.ए. प्रथम स्थान से पास किया। 19 साल में कलकत्ता में असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल की नौकरी मिली। उनकी प्रसिद्ध खोज ‘रमण प्रभाव’ है, जो प्रकाश की किरणों के प्रकीर्णन पर आधारित है, जिसके लिए 1930 में उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला, जो भारत के लिए पहला था। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका निधन 21 नवंबर 1970 को हुआ। अध्याय में व्याकरण की बात है, जैसे वाक्य के घटक: उद्देश्य (जिसके बारे में कहा जाता है, जैसे राम) और विधेय (जो कहा जाता है, जैसे अपनी पुस्तक पढ़ता है)। एक तालिका से रमण को उद्देश्य बनाकर विभिन्न विधेय जोड़कर वाक्य बनाने का अभ्यास है, जैसे रमण पहली बार विदेश गए। योग्यता विस्तार में विभिन्न वैज्ञानिकों और उनकी खोजों की सूची बनाना, वैज्ञानिक बनने के तरीके सोचना और कृषि कार्यों के बारे में पता करके बदलाव जानना शामिल है। अंत में कहा गया है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
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