प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “माँ! कह एक कहानी” नामक कविता पर आधारित है, जो एक बच्चे और उसकी माँ के संवाद के माध्यम से करुणा, न्याय, सेवा और अहिंसा जैसे जीवन मूल्यों की प्रेरणा देती है। कविता में बच्चा माँ से कहानी सुनाने को कहता है, और माँ एक करुणा भरी कहानी सुनाती है जहाँ पिता उपवन में भ्रमण कर रहे हैं; वहाँ रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, हिम बिंदु चमक रहे हैं, हलके झोंके हिल रहे हैं, पानी लहरा रहा है, और पक्षी कल-कल गा रहे हैं। सहसा एक हंस तीर से घायल होकर गिरता है, पिता उसे उठाकर नया जीवन देते हैं, और शिकारी को समझाते हैं कि हिंसा न करें, क्योंकि न्याय और करुणा से दुनिया सुंदर बनती है। कविता संवाद शैली में है, जो गीतात्मक और मार्मिक है, और इसमें बच्चे की जिज्ञासा और माँ के वात्सल्य का भाव प्रकट होता है। अध्याय में शिक्षण संकेत दिए गए हैं कि शिक्षक बालकों की सहज जिज्ञासा को उभारें, माँ के ममत्व पर चर्चा करें, और कविता को हाव-भाव व लय के साथ अभिनयात्मक ढंग से पढ़ाएँ। अभ्यास में कविता का भावार्थ समझना, विलोम शब्द (जैसे सुख-दुख, दिन-रात), समानार्थी शब्द (जैसे उपवन-बाग, पानी-जल, खग-पक्षी, शर-तीर) और तत्सम रूप (जैसे वानी-वाणी, सूरज-सूर्य, घी-घृत, कान-कर्ण, हाथ-हस्त, जीभ-जिह्वा) सिखाए गए हैं। योग्यता विस्तार में कविता को कहानी या नाट्य में बदलकर अभिनय करना सिखाया गया है। अंत में यमक और श्लेष अलंकार की व्याख्या है, जैसे यमक में ‘कनक’ शब्द दो बार अलग अर्थों में (धतूरा और सोना), और श्लेष में ‘पानी’ एक बार कई अर्थों में (चमक, इज्जत, जल)। अध्याय का संदेश है कि माँ का आँचल शीतल जल का सागर है, जो वात्सल्य का प्रतीक है।
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