प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “महाराजा श्री अग्रसेन” भारत की पवित्र भूमि पर जन्मे महान पुरुषों की चर्चा से शुरू होता है, जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर और गुरु नानक, और बताता है कि इसी धरती पर एक महान मानव अग्रसेन का जन्म हुआ, जिन्होंने सबसे पहले समाजवाद का पाठ पढ़ाया। उनका जन्म आज से 5125 वर्ष पहले आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हरियाणा के हिसार जिले के प्रताप नगर में हुआ था, पिता का नाम महाराजा वल्लभ था। बचपन से ही वे आज्ञाकारी और तेज बुद्धि के थे, उज्जैन में ताण्डव्य ऋषि के आश्रम में वैद्यशास्त्र, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र और राजनीति की गहरी पढ़ाई की। उनका विवाह नागलोक के राजा वासुकि की बेटी माधवी से हुआ। वीरता और परोपकार के कारण पिता ने उन्हें राजतिलक दिया और स्वतंत्र शासन का अवसर दिया। उस समय देश में कई राजवंश थे और राजा सत्ता के नशे में एक-दूसरे के राज्य हड़पने के लिए युद्ध करते थे, लेकिन अग्रसेन ने अव्यवस्थित राजनीति में सुधार कर मजबूत साम्राज्य बनाया और अग्रोहा नगर की स्थापना की। उन्होंने जरूरतमंदों की मदद के लिए “एक रुपया और एक ईंट” की परिपाटी शुरू की, जिसमें एक परिवार एक रुपया देकर जीविका और एक ईंट देकर घर बनाने में मदद करता था। अग्रवाल समाज के संस्थापक अग्रसेन ने 18 यज्ञ करवाए और प्रत्येक से एक गोत्र बनाया, कुल 18 गोत्र हैं। 18वें यज्ञ में उन्होंने अहिंसा का संदेश देकर पशुबलि बंद की। उनके राज्य में समानता और लोकतंत्र था, हर गोत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता था। उनकी शिक्षाएँ समानता, प्रेम, दया, करुणा, सत्य और अहिंसा पर आधारित थीं, जो महात्मा गांधी को भी प्रभावित करती थीं। दिल्ली में एक सड़क उनके नाम पर है, और अग्रोहा पर्यटन स्थल और अग्रवालों का तीर्थ है। अभ्यास में जन्म, अग्रवाल समाज, परिपाटी, लोकतांत्रिक व्यवस्था और पशुबलि बंद करने के कारणों पर प्रश्न हैं। भाषा अध्ययन में संयोजक चिन्ह वाले शब्द छाँटना, मुहावरों का वाक्य प्रयोग (जैसे पाठ पढ़ाना, आमादा रहना) और शब्दों की वर्तनी शुद्ध करना शामिल है। योग्यता विस्तार में व्यक्ति को महान बनाने वाले गुण छाँटना और अग्रसेन के जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ लिखना है, जैसे जीवन संघर्ष में शांत और धैर्यवान रहना सफलता दिलाता है।
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