प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “कर्तव्य पालन” हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे सुख-दुःख हो या लाभ-हानि, हमें हर परिस्थिति में अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। इसमें कथा के रूप में विद्यार्थियों और गुरुजी के बीच संवाद दिखाया गया है, जहाँ गुरुजी महाभारत के युद्ध का प्रसंग सुनाते हैं। अर्जुन युद्धभूमि में अपने ही संबंधियों को देखकर मोह और करूणा से भर जाते हैं तथा युद्ध करने से पीछे हट जाते हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें समझाते हैं कि मनुष्य को केवल अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। मृत्यु और जन्म जीवन का चक्र है, इसलिए इस पर व्यर्थ शोक करना उचित नहीं है। कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान समझकर कर्म करना ही श्रेष्ठ है। अंत में अर्जुन का मोह दूर हो जाता है और वे अपने कर्तव्य के प्रति दृढ़ निश्चय कर लेते हैं। इस नाटक के माध्यम से यह शिक्षा मिलती है कि हमें पाप-पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए, कर्म करते समय फल की आसक्ति त्यागनी चाहिए और जीवन में परिस्थितियों के अनुसार अपने कर्तव्य का पालन करना ही सच्चा धर्म है।
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