प्रार्थना – सारांश
इस अध्याय “बुन्देलखण्ड केसरी – महाराजा छत्रसाल” में वीरता, साहस और आत्मविश्वास से भरे महाराजा छत्रसाल के जीवन का वर्णन किया गया है। उनका जन्म 1649 ई. में बुन्देलखण्ड की वीर प्रसूता भूमि पर हुआ। उनके पिता चम्पतराय और माता लालकुँवरि भी पराक्रमी थे। बचपन से ही छत्रसाल में शौर्य और निर्भयता के गुण थे। उन्होंने कम आयु में ही अस्त्र-शस्त्र चलाना सीख लिया और मुग़ल सैनिकों से मंदिर की रक्षा कर अपनी वीरता का परिचय दिया। कठिन परिस्थितियों और माता-पिता के आत्मोत्सर्ग के बावजूद छत्रसाल ने हार नहीं मानी और अपने अधिकार व स्वतंत्रता की रक्षा का संकल्प लिया। उन्होंने छत्रपति शिवाजी से प्रेरणा लेकर मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष शुरू किया। बहुत कम साधनों से बनी छोटी सेना के बल पर उन्होंने अनेक किलों और क्षेत्रों को मुग़लों से मुक्त कराया। धीरे-धीरे पूरा बुन्देलखण्ड उनके अधिकार में आ गया और वे स्वतंत्र शासक बने। स्वामी प्राणनाथ से आशीर्वाद पाकर उन्होंने न्यायप्रिय और प्रजावत्सल राज्य चलाया, जहाँ हीरों की खदानों की खोज, पंचायती व्यवस्था और कड़े दण्ड के कारण प्रजा सुखी व सुरक्षित रही। वे कवियों के संरक्षक और स्वयं कवि भी थे। अंतिम समय में पेशवा बाजीराव की सहायता से उन्होंने मुहम्मद बंगश को हराया और अपना राज्य अपने पुत्रों तथा बाजीराव को बाँट दिया। 1731 ई. में उनका स्वर्गवास हुआ। धुबेला का समाधि स्थल आज भी उनके शौर्य और बलिदान की याद दिलाता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि कठिनाइयों और विपत्तियों के बावजूद साहस, धैर्य और कर्तव्य से कोई भी महान उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।
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