प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “मेरी वसीयत” जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखी गई है, जिसमें वे अपने देशवासियों से मिले प्रेम और मुहब्बत के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। नेहरू जी कहते हैं कि भारत के लोगों ने उन्हें इतना प्यार दिया कि उसका बदला देना असंभव है, और वे जीवन भर देश की सेवा करते रहना चाहते हैं। वे अपने दोस्तों और साथियों के एहसानों का जिक्र करते हैं, जिनके साथ उन्होंने बड़े काम किए, जिसमें सफलता और असफलता दोनों साझा कीं। नेहरू जी भारत की विरासत और निरंतरता से जुड़े हैं, और गंगा-यमुना नदियों से उनका बचपन से गहरा लगाव है। गंगा को वे भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक मानते हैं, जो सुबह मुस्कराती, शाम उदास, सर्दी में सिमटी और बरसात में शक्तिशाली दिखती है। वे धार्मिक रस्मों में विश्वास नहीं रखते, लेकिन भारत की विरासत का सम्मान करते हैं। अपनी वसीयत में वे चाहते हैं कि उनकी भस्म का एक हिस्सा इलाहाबाद के पास गंगा में डाला जाए और बाकी हवाई जहाज से खेतों पर बिखेर दिया जाए, ताकि वे भारत की मिट्टी में मिल जाएं। अध्याय में विदेशी शब्दों का उच्चारण, लेखन और अर्थ सिखाया गया है, जैसे मुहब्बत, बेशुमार। उपसर्गों का प्रयोग समझाया गया है, जैसे ‘बेशुमार’ में ‘बे’ उपसर्ग है। योग्यता विस्तार में नेहरू जी का जीवन परिचय, महापुरुषों के बारे में वाक्य, गंगा और अन्य नदियों का महत्व, प्रदेश की नदियां, गंगा के पर्यायवाची और भागीरथ-भागीरथी के अर्थ समझाने के कार्य दिए गए हैं।
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