प्रार्थना – सारांश
इस अध्याय “उपहार” में लेखक प्रेमकोमल बूँदिया ने दया, करुणा और सच्चे उपहार का महत्व समझाया है। इसमें एक न्यायप्रिय और दयालु राजा की कहानी है, जो अपने राज्य में किसी को दुःखी नहीं देखना चाहता था। राजकुमार के जन्मदिन पर राजा ने घोषणा की कि जो सबसे सुंदर उपहार लाएगा, उसे दस हजार स्वर्ण मुद्राएँ दी जाएँगी। राज्य के अमीर लोग सोने-चाँदी और कीमती वस्तुएँ लेकर आए, परंतु गरीब दीनू के पास केवल आटे की रोटियाँ थीं। उसने सोचा कि उपहार के बहाने राजा और राजकुमार के दर्शन कर लेगा। रास्ते में उसने भूखे भिखारी, कुत्तों, गाय और बछड़े को अपनी रोटियाँ बाँट दीं और दरबार में केवल एक रोटी लेकर पहुँचा। उसकी साधारण रोटी देखकर लोग हँस पड़े, लेकिन जब राजा ने दीनू की करुणा और त्याग की बात सुनी तो उसने उसे सबसे अच्छा उपहार घोषित किया। राजा ने दीनू को न केवल इनाम में स्वर्ण मुद्राएँ दीं बल्कि जमीन और आजीवन भरण-पोषण की व्यवस्था भी की। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा उपहार वही है जिसमें दया, करुणा और सेवा का भाव हो, क्योंकि सोना-चाँदी से बढ़कर भूखे को भोजन और असहाय को सहारा देना ही सबसे बड़ा उपहार है।
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