प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “दो कविताएँ” नाम से है, जिसमें नागार्जुन द्वारा रचित दो कविताएँ “मेघ बजे” और “फूले कदम्ब” दी गई हैं। इसमें सीखने की बातें हैं कि कविता को हाव-भाव और लय के साथ पढ़ना चाहिए, काव्य की सुंदरता समझनी चाहिए, प्रकृति से प्रेम करना चाहिए और समान ध्वनि वाले शब्दों से परिचय होना चाहिए। पहली कविता “मेघ बजे” में वर्षा के समय बादलों की गरज, बिजली की चमक, मेंढकों की आवाज, धरती का धुलना, कीचड़ का चंदन जैसा बनना और हल का स्वागत बताया गया है, जो वर्षा की खुशी दिखाती है। दूसरी कविता “फूले कदम्ब” में कदम्ब के फूल टहनियों पर गेंदों जैसे झूलते हैं, सावन बीत गया लेकिन बादलों का गुस्सा नहीं गया, वे लगातार बरस रहे हैं और मन कदम्ब को छूने को कहता है। कवि नागार्जुन का जन्म नाम वैद्यनाथ मिश्र था, जन्म जून 1911 में तरौनी गाँव, दरभंगा, बिहार में हुआ, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत भारती सम्मान और कई राज्य सम्मान मिले, उनकी रचनाएँ उपन्यास, कहानियाँ और कविताएँ हैं। अभ्यास में तुकांत शब्द ढूँढना जैसे खुला-धुला, ध्वन्यात्मक शब्द लिखना, अनुप्रास अलंकार वाली पंक्तियाँ छाँटना, उपसर्ग अलग करना जैसे अभिनंदन में ‘अभि’, और बहुविकल्पी प्रश्न हैं जैसे सरिता अभिनंदन समारोह में गई। योग्यता विस्तार में वर्षा ऋतु के मौसमी बदलाव लिखकर बालसभा में सुनाना, सुंदर फूल वाले पेड़-पौधों की सूची बनाना और वर्षा पर आधारित कोई गीत या कविता खोजकर लिखना है। अंत में कहा गया है कि पंचतत्व से बनी प्रकृति के अन्य प्राणियों की तरह वृक्ष भी स्पंदनशील और प्राणवान हैं।
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