प्रार्थना – सारांश
इस अध्याय “हिमालय” में कवि घमण्डीलाल अग्रवाल ने हिमालय की महानता, स्थिरता और महत्व का भावपूर्ण चित्रण किया है। हिमालय अनगिनत सदियों से अडिग खड़ा है और भारतमाता के मस्तक पर मुकुट की तरह शोभित होता है। यह हमारी उत्तर दिशा की रक्षा करता है और देश के लिए शक्ति व साहस का प्रतीक है। हिमालय दुश्मनों को परास्त कर उनका मुँह काला करता है तथा जन-जन की पीड़ा दूर करता है। इसकी गोद से गंगा जैसी पवित्र नदी बहती है जो परोपकार और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है। हिमालय जड़ी-बूटियों का भंडार है और इसके सुंदर दृश्य मन को आनंदित करते हैं। इसे उम्मीदों का घड़ा और सपनों की आभा कहा गया है क्योंकि यह हमें नई प्रेरणा और आशा प्रदान करता है। यह हमारी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है, इसलिए इसे सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। कवि ने हिमालय को पिता के समान बताया है जो हमारी रक्षा करता है और हर मुश्किल का डटकर सामना करता है। लेकिन नई सदी में हो रहे नकारात्मक परिवर्तनों से हिमालय भी शर्मिंदा होता है। इस कविता से हमें देशभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा, परोपकार और प्रकृति-संरक्षण का संदेश मिलता है।
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