प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “दाँत हैं तो जहान है” हास्य-व्यंग्य शैली में लिखा गया है। लेखक ने शरीर के अंगों की तुलना करते हुए दाँतों के महत्व को सबसे ऊपर बताया है। वे कहते हैं कि कुछ अंग केवल सजावट के लिए होते हैं, जैसे बाल, जिनका न होना भी कोई विशेष फर्क नहीं डालता। वहीं आँखों का महत्व भी सीमित माना गया है, क्योंकि वे केवल देखने का काम करती हैं और जीवन में बहुत कुछ देखने के बाद उनका महत्व कम हो जाता है। इसके विपरीत, दाँत हर समय काम आते हैं। दाँत न केवल खाने के लिए आवश्यक हैं, बल्कि डराने, हँसने, रोने और भाव व्यक्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाथी और साँप जैसे उदाहरणों से लेखक ने दाँतों की शक्ति को मज़ेदार ढंग से समझाया है। वे कहते हैं कि दाँतों के बिना मनुष्य जीवन निरर्थक हो जाता है और लोग अपने दाँतों को इतना मूल्यवान मानते हैं कि उनमें सोना-चाँदी भी लगवाते हैं। अंत में लेखक परमात्मा से यही प्रार्थना करता है कि चाहे अन्य अंगों को नुकसान पहुँचे, पर उसकी बत्तीसी सही-सलामत बनी रहे। इस प्रकार अध्याय हँसी-मज़ाक के माध्यम से दाँतों की उपयोगिता और महत्व को रोचक शैली में प्रस्तुत करता है।
Leave a Reply