प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “राखी का मूल्य” एक एकांकी है, जो मेवाड़ की महारानी कर्मवती और बादशाह हुमायूँ की कहानी के माध्यम से सांस्कृतिक और साम्प्रदायिक सद्भावना को दर्शाता है। कर्मवती, जो महाराणा साँगा की विधवा हैं, मेवाड़ पर संकट के समय हुमायूँ को राखी भेजती हैं, जिससे भाई-बहन का रिश्ता बनता है। कर्मवती कहती हैं कि क्षत्राणियों की राखियाँ अनमोल होती हैं, जिन्हें स्वीकार करने वाले योद्धा प्राणों का बलिदान देते हैं। एक क्षत्रिय जवाब देता है कि मेवाड़ के योद्धा राखी के धागों से बल पाते हैं और हँसते-हँसते प्राण दे देते हैं। हुमायूँ राखी का सम्मान करते हुए मेवाड़ की मदद के लिए सेना भेजते हैं, जिससे भाई-चारे और त्याग का महत्व दिखता है। एकांकी में संवादों को अभिनय के साथ प्रस्तुत करना, योजक चिह्न (जैसे हँसते-हँसते), प्रत्यय (जैसे वीरता में ‘ता’), उर्दू शब्दों का शुद्ध उच्चारण और वचन-भेद (एकवचन: राखी, बहुवचन: राखियाँ) सिखाया गया है। अभ्यास में उर्दू शब्दों के अर्थ, ‘तो’ निपात वाले वाक्य छाँटना, मुहावरों का प्रयोग (जैसे हँसते-हँसते प्राण देना), बहुवचन लिखना और वाक्य बनाना शामिल है। योग्यता विस्तार में एकांकी का अभिनय, कहानी में रूपांतरण, भाई-चारे पर आधारित सामग्री सुनाना और राणा साँगा व हुमायूँ की जानकारी इकट्ठा करना सिखाया गया है। अंत में कहा गया है कि सच्ची प्रतिष्ठा के लिए त्याग और सेवा काफी हैं, सम्पत्ति की जरूरत नहीं।
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