प्रार्थना – सारांश
यह अध्याय “नीति के दोहे” संत कवियों कबीर, रहीम और तुलसीदास के दोहों के माध्यम से नैतिक और सदाचार के गुण सिखाता है। कबीर के दोहे बताते हैं कि संसार का रंग झूठा है, गलत काम करने से पछतावा होता है, निंदक को पास रखने से स्वभाव शुद्ध होता है और अति हर चीज में हानिकारक है। रहीम के दोहे सिखाते हैं कि पेड़ और तालाब स्वयं फल-पानी नहीं लेते, बल्कि दूसरों के लिए देते हैं, मूल कार्य को साधने से सब कुछ सधता है और बड़े लोग अपनी बड़ाई नहीं करते। तुलसीदास के दोहे कहते हैं कि शरीर खेत है, मन किसान है, पाप-पुण्य बीज हैं, जो बोया जाता है वही काटा जाता है; सज्जन को झूठ और दुष्ट को सच कड़वा लगता है; संसार में गुण-दोष दोनों हैं, संत गुण ग्रहण करते हैं। कवियों का परिचय दिया गया है: कबीर (1398-1518) निर्गुण भक्ति के कवि, रहीम (1556-1624) भक्ति और नीति के कवि, तुलसीदास (1532-1623) रामचरितमानस के रचयिता। व्याकरण में तत्सम (जैसे विद्या) और तद्भव (जैसे बिद्या) शब्द, वाक्य भेद (साधारण, प्रश्नवाचक, विस्मयादिबोधक, निषेधात्मक), बहुवचन, तत्पुरुष समास, हिन्दी-अंग्रेजी-उर्दू शब्द, विराम चिह्न, उपसर्ग और उर्दू शब्दों के हिन्दी अर्थ सिखाए गए हैं। अभ्यास में दोहों का भावार्थ, वाक्य परिवर्तन, बहुवचन लिखना, समास छाँटना, शब्दों का वर्गीकरण, विराम चिह्न लगाना और “दादी की घड़ी” का सारांश लिखना शामिल है। योग्यता विस्तार में नीति के दोहे सुनाना, संतों की रचनाएँ संकलित करना और दोहों का अर्थ समझाना है।
Leave a Reply