बिरसा मुण्डा
परिचय
बिरसा मुण्डा एक वीर क्रांतिकारी और जनजातीय नेता थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ मुण्डा जनजाति का नेतृत्व किया।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम: भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था, जिसमें राजा-रजवाड़ों के साथ-साथ आम लोग और जनजातियाँ भी शामिल थीं।
बिरसा ने मुण्डा जनजाति को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया।
यह पाठ बिरसा के जीवन, उनके संघर्ष और स्वतंत्रता के लिए उनके योगदान को दर्शाता है।
मुख्य बिंदु
1. बिरसा मुण्डा का प्रारंभिक जीवन
जन्म: बिरसा का जन्म छोटा नागपुर (वर्तमान झारखण्ड) के चालकड़ गाँव में हुआ।
मुण्डा जनजाति: यह भारत की प्रमुख जनजाति है, जो राँची और आसपास के क्षेत्रों में रहती है। ये लोग प्रकृति पर निर्भर सरल जीवन जीते हैं।
उपासना: मुण्डा समाज ‘सिंग’ (सूर्य) और ‘बोंगा’ (देवी) की पूजा करता है।
बचपन: बिरसा एक सामान्य बालक थे, जो खेती-बाड़ी और पशु चराने में अपने माता-पिता की मदद करते थे।
शिक्षा: आर्थिक तंगी के कारण बिरसा को अपने मामा के गाँव भेजा गया, लेकिन वहाँ वे अधिक समय नहीं रुके। बाद में उनके पिता ने उन्हें सालगा गाँव की पाठशाला में भर्ती किया, जहाँ उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा पास की। फिर चाईबासा के लूथरन मिशन स्कूल में पढ़ाई की।
शौक: बिरसा को बंसी बजाने का बहुत शौक था, जिसके कारण उन्हें कई बार डाँट भी पड़ती थी।
2. अंग्रेजों के खिलाफ जागृति
मिशन स्कूल का अनुभव: स्कूल में बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा मुण्डा जनजाति के शोषण को देखा और उनकी आलोचना शुरू की।
निष्कासन: स्कूल प्रबंधकों को उनकी आलोचना पसंद नहीं आई, और उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। इससे उनकी पढ़ाई छूट गई।
सेवा कार्य: निष्कासन के बाद बिरसा ने लोगों की सेवा शुरू की। वे जड़ी-बूटियों से बीमार लोगों का इलाज करते थे, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी।
लोकप्रियता: लोग उन्हें सिद्ध पुरुष और अवतारी मानने लगे। उनके इलाज से ओझाओं का काम प्रभावित हुआ।
3. आंदोलन की शुरुआत
प्रेरणा: बिरसा ने कहा कि उन्हें ‘सिंग बोंगा’ ने प्रेरणा दी है कि वे मुण्डा लोगों को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराएँ।
आंदोलन का उद्देश्य:
- अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह।
- जनजातियों की जमीन और अधिकार वापस दिलाना।
- शोषण और अन्याय का विरोध।
संगठन: बिरसा ने गाँव-गाँव जाकर सभाएँ कीं और लोगों को एकजुट किया। उन्होंने कहा, “हम शोषकों से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे।”
हथियार: मुण्डा लोग भाले और तीर-कमान लेकर बिरसा के साथ एकत्र हुए।
4. अंग्रेजों का दमन
गिरफ्तारी: बिरसा की क्रांतिकारी गतिविधियों से परेशान अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर राँची जेल में डाल दिया। उन्हें दो साल की सजा दी गई।
पुन: आंदोलन: सजा पूरी होने के बाद बिरसा ने फिर से अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
जंगल की लड़ाई: जनवरी 1900 में मुण्डा समाज ने अंग्रेजों के खिलाफ तीव्र विद्रोह किया। यह जंगल में तीर-कमान और भालों से लड़ा गया।
दूसरी गिरफ्तारी: अंग्रेजों ने बिरसा को पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया। कुछ लोगों ने लालच में आकर बिरसा को पकड़वा दिया।
5. बिरसा की मृत्यु
बीमारी: जेल में बिरसा की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें खून की उल्टियाँ होने लगीं।
मृत्यु: मुकदमे की सुनवाई के दौरान उनकी हालत और खराब हो गई, और वे सदा के लिए सो गए।
दाह-संस्कार: अंग्रेजों ने उपद्रव के डर से उनका दाह-संस्कार गुप्त रूप से किया।
विरासत: बिरसा की मृत्यु के बाद भी उनके विचारों ने लोगों में स्वतंत्रता की ज्योति जलाए रखी। वे मुण्डा समाज के लोक देवता बन गए।
बिरसा मुण्डा के चरित्र की विशेषताएँ
देशप्रेमी: बिरसा ने अपनी जनजाति और देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त करने के लिए जीवन समर्पित किया।
नेतृत्व क्षमता: उन्होंने मुण्डा और अन्य जनजातियों को एकजुट कर आंदोलन का नेतृत्व किया।
साहसी: अंग्रेजों के दबाव के बावजूद उन्होंने सत्य की राह नहीं छोड़ी।
सेवाभावी: बीमार लोगों का इलाज कर उनकी सेवा की।
प्रेरक: उनके विचारों ने लोगों में स्वतंत्रता की भावना जागृत की।
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