प्राण जाएँ पर वृक्ष न जाए
पाठ का परिचय
इस पाठ में पर्यावरण की रक्षा का महत्व बताया गया है। पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण को शुद्ध रखने में बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह पाठ विश्नोई समाज की एक सच्ची कहानी के माध्यम से वृक्षों और जीवों की रक्षा के लिए प्रेरित करता है। इस कहानी में अमृता देवी और 362 अन्य विश्नोइयों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस पाठ का मुख्य उद्देश्य छात्रों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करना है।
मुख्य बिंदु
1. पर्यावरण और वृक्षों का महत्व
आज विश्व में वृक्षों की संख्या कम हो रही है और पर्यावरण बिगड़ रहा है।
वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं और प्रदूषण को कम करते हैं।
वृक्षों की कटाई पर रोक और वृक्षारोपण पर जोर दिया जा रहा है।
हमें पेड़ों की जरूरत है, लेकिन पेड़ों को हमारी जरूरत नहीं।
2. विश्नोई समाज और उनकी शिक्षाएँ
स्थापना: सन् 1485 में भगवान जंभेश्वर ने विश्नोई समाज की स्थापना की।
नियम: उन्होंने प्रकृति से जुड़े 29 नियम बनाए, जिनमें वृक्षों और जीवों की रक्षा करना प्रमुख है।
विश्नोई समाज का योगदान: विश्नोइयों ने वृक्षों और वन्य जीवों की रक्षा के लिए कई बलिदान दिए। उनकी यह परंपरा उनकी पहचान बन गई है।
3. अमृता देवी और खेजड़ली का बलिदान
घटना: सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह को अपने महल के लिए लकड़ी चाहिए थी। उनकी सेना खेजड़ली गाँव में पेड़ काटने पहुँची।
विरोध: विश्नोई समाज ने इसका विरोध किया। अमृता देवी ने पेड़ से लिपटकर कहा, “सिर साँटे पर रूख रहे तो भी सस्तो जाण” (अर्थ: अगर सिर कट जाए और पेड़ बच जाए तो यह सस्ता सौदा है)।
बलिदान: सेना ने अमृता देवी को पेड़ के साथ काट दिया। इसके बाद 362 अन्य विश्नोई नर-नारी पेड़ों से लिपट गए और अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन एक भी पेड़ नहीं कटने दिया।
राजा का पश्चाताप: जब राजा को इस घटना का पता चला, वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने खेजड़ली गाँव में माफी माँगी और ताम्रपत्र पर आदेश जारी किया कि विश्नोई गाँवों में कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा।
4. हिरणों की रक्षा
विश्नोई समाज ने हिरणों की रक्षा के लिए भी बलिदान दिए।
सन् 1996 में चुरू, राजस्थान में निहालचंद विश्नोई ने हिरणों की रक्षा करते हुए अपने प्राण दिए। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया।
हिरण विश्नोइयों को पहचानते हैं और उनके साथ बकरियों की तरह घूमते हैं।
5. पुरस्कार और सम्मान
राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार: भारत सरकार हर साल अमृता देवी और 362 शहीदों की याद में यह पुरस्कार देती है।
मध्यप्रदेश सरकार:
वन संवर्धन और रक्षा के लिए ग्राम पंचायत या संस्था को अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार और 1 लाख रुपये देती है।
दो व्यक्तिगत पुरस्कार (50,000 रुपये और प्रशस्ति-पत्र) वन संरक्षण और वन्य जीवों की रक्षा के लिए दिए जाते हैं।
6. चिपको आंदोलन
क्या है?: उत्तराखंड के गढ़वाल में वृक्षों की अवैध कटाई रोकने के लिए शुरू हुआ आंदोलन।
गौरा देवी: एक साधारण महिला गौरा देवी ने अपने सहयोगियों के साथ वृक्षों से चिपककर उनकी रक्षा की। इसीलिए इसे चिपको आंदोलन कहा गया।
सुंदरलाल बहुगुणा: उनके प्रयासों से यह आंदोलन बड़ा हुआ और हजारों पेड़ों को कटने से बचाया गया।
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