गिरधर की कुण्डलियाँ
पाठ का परिचय
गिरधर कविराय की कुण्डलियाँ हिंदी साहित्य में बहुत प्रसिद्ध हैं। ये कुण्डलियाँ हमें जीवन में अच्छे व्यवहार और नैतिकता की सीख देती हैं। इनके माध्यम से हम अपने जीवन को बेहतर और आसान बना सकते हैं। इस पाठ में हम लोक व्यवहार, छंद, अलंकार, अनुस्वार, अनुनासिक, और पर्यायवाची शब्दों के बारे में सीखेंगे।
उद्देश्य
लोक व्यवहार की सीख: अच्छे व्यवहार और नैतिकता को समझना।
अलंकार: कविता में अलंकार पहचानना।
छंद: चौपाई, रोला और कुण्डलिया छंद को समझना।
भाषा-अध्ययन: अनुस्वार, अनुनासिक, पर्यायवाची और तुकान्त शब्दों का परिचय।
कवि परिचय
नाम: गिरधर कविराय
जन्म: संवत् 1770 (लगभग 1713 ई.)
जन्मस्थान: अवध (उत्तर प्रदेश)
विशेषता: गिरधर ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर कई कुण्डलियाँ लिखीं। जिन कुण्डलियों की शुरुआत ‘साईं’ शब्द से होती है, वे उनकी पत्नी ने लिखीं।
जीवन: उन्होंने अपना राज्य छोड़कर भ्रमण किया और उस दौरान कुण्डलियाँ रचीं।
प्रकाशन: उनकी कुण्डलियाँ ‘गिरधर की कुण्डलियाँ’ नामक पुस्तक में संग्रहित हैं।
कुण्डलियाँ और उनका अर्थ
1. धन और अभिमान
कुण्डलिया:
दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान। चंचल जल दिन चारि को, ठाँउ न रहत निदान ॥ ठाँउ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै। मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही सौं कीजै ॥ कह गिरधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत। पाहुन निस दिन चारि, रहत सब ही के दौलत।।
अर्थ:
धन पाकर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि धन स्थायी नहीं है, यह पानी की तरह चंचल है और कुछ ही दिनों में खत्म हो सकता है।
दुनिया में सम्मान (जस) कमाने के लिए मीठे और विनम्र शब्द बोलने चाहिए।
हमें यह समझना चाहिए कि हम इस दुनिया में मेहमान (पाहुन) की तरह कुछ समय के लिए हैं, इसलिए सबके साथ अच्छा व्यवहार करें।
सीख: धन का घमंड न करें, विनम्र रहें और सम्मान कमाएँ।
2. गुणों की महत्ता
कुण्डलिया:
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय। जैसे कागा कोकिला, सबद सुनै सब कोय ॥ सबद सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन। दोऊ को रंग एक, काग सब भए अपावन ॥ कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के। बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के ॥
अर्थ:
दुनिया में गुणों की कद्र करने वाले हजारों लोग हैं, लेकिन बिना गुणों के कोई सम्मान नहीं पाता।
कोयल और कौए की आवाज में अंतर है। कोयल की आवाज मीठी और सुहावनी होती है, जबकि कौए की आवाज कर्कश और अप्रिय।
दोनों का रंग एक जैसा (काला) है, लेकिन कोयल को उसकी मधुर आवाज के कारण पसंद किया जाता है, जबकि कौआ अपवित्र माना जाता है।
इसलिए हमें अपने गुणों को बढ़ाना चाहिए।
सीख: बाहरी रूप से ज्यादा महत्व नहीं है, गुण ही हमें सम्मान दिलाते हैं।
3. बीती बातें भूलें
कुण्डलिया:
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ। जो बनि आवे सहज में, ताही पे चित्त देइ॥ ताही पे चित देइ, बात जोई बनि आवै। दुर्जन हँसे न कोय, चित्त में खता न पावै ॥ कह गिरधर कविराय, यहै करु मन परतीती। आगे को सुख समुझि, होय बीती सो बीती ॥
अर्थ:
बीती हुई बातों को भूल जाना चाहिए और भविष्य की चिंता करनी चाहिए।
जो काम स्वाभाविक रूप से हो, उसी पर ध्यान देना चाहिए।
बुरे लोग हमारा मजाक न उड़ाएँ, इसके लिए हमें गलतियाँ नहीं करनी चाहिए।
भविष्य में सुख की उम्मीद रखें और बीते हुए दुखों को भूल जाएँ।
सीख: अतीत की गलतियों को भूलकर भविष्य पर ध्यान दें और अच्छे काम करें।
छंदों का परिचय
1. चौपाई:
यह एक मात्रिक छंद है।
इसमें चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ।
उदाहरण:
मंजु विलोचन मोचन वारी। बोली देखि राम महतारी ॥ तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सास-ससुर परिजनहिं पियारी ॥
2. रोला:
यह भी मात्रिक छंद है।
प्रत्येक चरण में 11 और 13 पर यति देकर 24 मात्राएँ होती हैं।
दो चरणों के अंत में तुक होती है।
उदाहरण:
नीलाम्बर परिधान, हरितपट पर सुन्दर है, सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
3. कुण्डलिया:
यह दोहा और रोला का मिश्रण है।
दोहा के विषम चरणों में 13-13 और सम चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
रोला में 11 और 13 पर यति देकर 24 मात्राएँ होती हैं।
कुण्डलिया जिस शब्द से शुरू होती है, उसी शब्द से खत्म होती है।
उदाहरण: इस पाठ की सभी कुण्डलियाँ।
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