लक्ष्य-वेध
पाठ का परिचय
इस पाठ में लेखक श्री रामनाथ सुमन हमें जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने और उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे बताते हैं कि लक्ष्य को पाने के लिए तन्मयता (पूर्ण समर्पण) बहुत जरूरी है। तन्मयता का मतलब है कि हमारा पूरा ध्यान, मन और शरीर सिर्फ अपने लक्ष्य पर केंद्रित हो। लेखक दो ऐतिहासिक घटनाओं-महाभारत के अर्जुन और मराठा इतिहास के सिंहगढ़ की विजय-के उदाहरण देकर समझाते हैं कि कैसे एकाग्रता और दृढ़ संकल्प से लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु
1. लक्ष्य का महत्व:
- जीवन में एक निश्चित लक्ष्य चुनना बहुत जरूरी है। यह हमें भ्रम, संदेह और अनिश्चितता से बचाता है।
- लक्ष्य चुनने से जीवन की सबसे बड़ी कठिनाई दूर हो जाती है। अब सवाल सिर्फ यह रहता है कि उस लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाए।
2. लक्ष्यवेध का मूल मंत्र: तन्मयता:
- तन्मयता का अर्थ है अपने लक्ष्य में पूरी तरह डूब जाना। सोते-जागते, उठते-बैठते, हर पल सिर्फ वही लक्ष्य दिखाई दे।
- लक्ष्य के अलावा और कुछ न सोचें। आपका पूरा ध्यान और ऊर्जा सिर्फ उस एक लक्ष्य पर होनी चाहिए।
- उदाहरण: जैसे सूरज की किरणों को लेंस से एक जगह केंद्रित करने पर आग लग जाती है, वैसे ही मन की शक्ति को एक लक्ष्य पर केंद्रित करने से सफलता मिलती है।
3. महाभारत की घटना (अर्जुन और द्रोणाचार्य):
- आचार्य द्रोण राजकुमारों को तीरंदाजी की परीक्षा ले रहे थे। उन्होंने एक पेड़ पर बैठी चिड़िया की आँख की पुतली को निशाना बनाने को कहा।
- जब द्रोणाचार्य ने सभी राजकुमारों से पूछा, “तुम्हें क्या दिखाई देता है?”, तो ज्यादातर ने पेड़, टहनी, चिड़िया आदि का जिक्र किया।
- लेकिन अर्जुन ने कहा, “मुझे सिर्फ चिड़िया की आँख की पुतली दिखाई देती है।”
- अर्जुन की एकाग्रता और तन्मयता के कारण वे परीक्षा में सफल हुए। यह दर्शाता है कि लक्ष्य पर पूरी तरह केंद्रित होना जरूरी है।
4. मराठा इतिहास की घटना (सिंहगढ़ की विजय):
- मराठों ने सिंहगढ़ किले पर विजय पाने का संकल्प लिया। युद्ध में उनका नेता तानाजी मालुसरे मारा गया, जिससे मराठा सैनिक हिम्मत हारने लगे।
- तानाजी के छोटे भाई सूर्याजी ने देखा कि सैनिक रस्सी के सहारे भागने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने रस्सी काट दी और सैनिकों को चिल्लाकर कहा, “भागने का रास्ता बंद है, अब सिर्फ लड़ो!”
- रस्सी कटने से मराठों का ध्यान सिर्फ लक्ष्य (किले की विजय) पर केंद्रित हो गया। उन्होंने पूरी ताकत से लड़ाई की और सिंहगढ़ जीत लिया।
- यह घटना बताती है कि जब पीछे हटने का रास्ता नहीं होता, तो इंसान अपने लक्ष्य पर पूरी तरह केंद्रित हो जाता है।
5. लक्ष्यवेध के लिए जरूरी बातें:
- लक्ष्य में पूरी तरह डूब जाएं, ताकि दूसरी चीजें ध्यान न भटकाएं।
- जैसे तीर अपने निशाने की ओर सीधे जाता है, वैसे ही हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
- कुतुबनुमा की सुई हमेशा उत्तर दिशा की ओर रहती है, उसी तरह हमें अपने लक्ष्य से नहीं डिगना चाहिए।
- अगर हम लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित और एकनिष्ठ हों, तो सफलता निश्चित है।
6. लक्ष्यवेध में बाधाएँ:
- अगर हम पीछे हटने का रास्ता छोड़ रखते हैं, तो हमारा ध्यान लक्ष्य से भटक सकता है।
- दुनिया के कई आकर्षण और बाधाएँ हमें हमारे रास्ते से हटा सकती हैं, लेकिन हमें ध्रुवतारे (लक्ष्य) की ओर देखते रहना चाहिए।
7. लक्ष्यवेध की शक्ति:
- वैज्ञानिक कहते हैं कि एक एकड़ घास में इतनी शक्ति होती है कि वह दुनिया की सारी मशीनें चला सकती है, बशर्ते उसे एकत्र और केंद्रित किया जाए।
- उसी तरह, अगर हम अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत को एक लक्ष्य पर केंद्रित करें, तो हम दुनिया को हिला सकते हैं।
8. संसार में लोग:
- कुछ लोग काम को बोझ समझकर करते हैं।
- कुछ लोग मेहनत तो करते हैं, लेकिन लक्ष्य के प्रति समर्पित नहीं होते।
- बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो लक्ष्य में पूरी तरह डूबकर काम करते हैं। यही लोग सफलता पाते हैं और दुनिया को बदल देते हैं।
लेखक परिचय
नाम: श्री रामनाथ सुमन
विशेषता: हिन्दी के प्रसिद्ध निबंधकार और साहित्यकार।
विचारधारा: गांधीवादी विचारों से प्रभावित।
प्रमुख रचनाएँ: ‘जीवन यज्ञ’, ‘भाई के पत्र’, ‘घर की रानी’, ‘नई जिंदगी’ आदि।
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