महेश्वर
पाठ का परिचय
महेश्वर भारत के प्राचीन और महत्वपूर्ण नगरों में से एक है, जो मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के किनारे बसा है। यह नगर पुरातात्विक, धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इस पाठ में महेश्वर की प्राचीन सभ्यता, इतिहास, और महारानी अहिल्याबाई के योगदान के बारे में एक पत्र के माध्यम से बताया गया है।
महेश्वर का महत्व
पुरातात्विक महत्व:
- महेश्वर की खुदाई में पाषाण काल से लेकर मराठा काल तक की सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
- पाषाण काल के औजार, लाल-काले मिट्टी के बर्तन, और प्रागैतिहासिक काल के घास-फूस के घरों के निशान मिले।
- ईसा पूर्व चौथी सदी से पहली सदी तक के भवनों में ईंटों का उपयोग हुआ, जो उस समय की उन्नत निर्माण तकनीक को दर्शाता है।
- मौर्य, सातवाहन, और गुप्त काल में महेश्वर का विकास अपने चरम पर था।
धार्मिक महत्व:
- नर्मदा नदी के किनारे बसा होने के कारण यहाँ भक्ति और शांति का माहौल है।
- महारानी अहिल्याबाई ने यहाँ एक किला और भगवान शिव का विशाल मंदिर बनवाया, जिसमें पवित्र शिवलिंग स्थापित है।
- मंदिर में अहिल्याबाई द्वारा प्रज्ज्वलित अखंड दीप आज भी जलता है, जिसमें दर्शनार्थी घी डालकर पुण्य कमाते हैं।
- सुबह-शाम नर्मदा में स्नान और ‘जय नर्मदे मैया’ का जाप करने वाले भक्तों का माहौल भक्तिमय रहता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व:
- महेश्वर को सूर्यवंश के राजा मान्धाता ने बसाया था। इसका प्राचीन नाम माहेश्वरी या माहिष्यमती था।
- हैहय साम्राज्य की राजधानी रहा, जिसके राजा सहस्त्रार्जुन थे।
- महारानी अहिल्याबाई ने मराठा काल में इसे फिर से प्रसिद्ध बनाया। उन्होंने घाट, मंदिर, धर्मशालाएँ और भवन बनवाए।
- महेश्वर की रेशमी साड़ियाँ (महेश्वरी साड़ियाँ) देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य:
- नर्मदा नदी का किनारा, मंदिरों की घंटियों की आवाज, और ‘ऊँ नमः शिवाय’ का मंत्रोच्चार महेश्वर को और आकर्षक बनाता है।
महेश्वर का इतिहास
प्राचीन काल:
- सूर्यवंश के राजा मान्धाता ने महेश्वर को बसाया।
- बाद में सहस्त्रार्जुन ने इसे हैहय साम्राज्य की राजधानी बनाया।
- सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि की हत्या की, जिसके कारण परशुराम ने उनका वध किया।
मध्यकाल:
- समय के साथ महेश्वर इतिहास में गुम हो गया।
- मराठा काल में महारानी अहिल्याबाई ने इसे फिर से जीवंत किया। उन्होंने यहाँ भव्य निर्माण कार्य कराए।
पुरातात्विक खोजें:
- पाषाण काल के औजार, मिट्टी के बर्तन, और घड़े मिले।
- ईसा पूर्व चौथी सदी से पहली सदी तक के भवनों में ईंटों का उपयोग हुआ।
- मौर्य, सातवाहन, और गुप्त काल के अवशेष भी मिले।
- धातुओं (सोना, चाँदी, ताँबा, काँसा, लोहा) का उपयोग उस समय के कला और शिल्प को दर्शाता है।
महारानी अहिल्याबाई का योगदान
निर्माण कार्य:
- नर्मदा के तट पर किला और भगवान शिव का मंदिर।
- सुंदर घाट, मंदिर, धर्मशालाएँ और भवन।
सांस्कृतिक योगदान:
- महेश्वरी साड़ियों को बढ़ावा दिया, जो आज भी प्रसिद्ध हैं।
लोकमाता के रूप में सम्मान:
- अहिल्याबाई को उनके न्याय, दान, और जनकल्याण के कार्यों के कारण “लोकमाता” कहा जाता है।
- मालवा क्षेत्र में उनके चित्र घर-घर में पूजे जाते हैं।
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