अपना स्वरूप
पाठ का उद्देश्य
स्वभाव की कमियों को पहचानना: हमें अपने अंदर की कमियों को समझना और उन्हें सुधारना सिखाया गया है।
सद्गुण अपनाने की प्रेरणा: बुरे गुणों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
भाषा सीखना: शब्दों के अर्थ, विपरीत शब्द, विशेषण-विशेष्य, एकवचन-बहुवचन, और पुल्लिंग-स्त्रीलिंग रूप सीखना।
जीवन मूल्य: दूसरों में अपने विचारों की छाया देखने की प्रवृत्ति को समझना और अपने स्वभाव को बेहतर बनाने की प्रेरणा।
कहानी का सार
लेखक: विजय गुप्ता
कहानी का सार: यह कहानी हमें सिखाती है कि हम दूसरों को अपने स्वभाव और विचारों के आधार पर देखते हैं। अगर हमारा स्वभाव अच्छा है, तो हमें सब अच्छे दिखते हैं, और अगर स्वभाव बुरा है, तो सब बुरे नजर आते हैं। कहानी में एक दर्पण (आईना) के माध्यम से यह समझाया गया है कि दर्पण में हमें अपनी ही छवि दिखती है, ठीक उसी तरह हमारा मन भी दूसरों में हमारे गुणों की छाया देखता है।
कहानी का सारांश
1. पृष्ठभूमि: बहुत पुराने समय में, जब न बसें थीं, न रेलगाड़ियाँ, न हवाई जहाज, लोग अपनी जरूरतें गाँव में ही पूरी करते थे। उत्तर प्रदेश की पहाड़ियों में एक ऐसा गाँव था, जहाँ लोग प्रकृति के बीच रहते थे और नगरों में कम ही जाते थे।
2. मुख्य पात्र: बीरबल, एक बुद्धिमान किसान, जो गाँव से बाहर जाकर नई चीजें देखना चाहता था।
3. कहानी की शुरुआत: बीरबल नगर गया और वहाँ उसने एक दर्पण देखा, जिसमें लोगों की परछाई दिखती थी। उसने इसे आश्चर्यजनक समझकर खरीद लिया।
4. घर में घटना:
बीरबल ने दर्पण को संदूक में रख दिया और अपनी पत्नी को एक माला दी।
पत्नी ने संदूक खोला और दर्पण में अपनी छवि देखकर सोचा कि बीरबल ने उसकी सौतन (दूसरी पत्नी) को इसमें छिपाया है।
सास ने दर्पण में अपनी छवि देखी और सोचा कि इसमें एक बूढ़ी औरत है।
ससुर ने दर्पण देखा और कहा कि इसमें एक सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा है।
5. गलतफहमी: सभी ने दर्पण में अपनी-अपनी छवि देखी और उसे दूसरा व्यक्ति समझ लिया। इससे घर में शोर-शराबा हुआ।
6. बीरबल का स्पष्टीकरण: बीरबल ने समझाया कि दर्पण में कोई नहीं है, यह सिर्फ सामने वाले की परछाई दिखाता है।
7. शिक्षा: जैसे दर्पण में हम अपनी छवि देखते हैं, वैसे ही हम दूसरों में अपने गुण देखते हैं। दुर्योधन को सभी बुरे दिखे, क्योंकि उसका स्वभाव बुरा था, जबकि युधिष्ठिर को सभी अच्छे दिखे, क्योंकि उनका स्वभाव अच्छा था।
कहानी से सीख
1. अच्छा स्वभाव अपनाएँ: हमें अपने विचारों और स्वभाव को अच्छा बनाना चाहिए, ताकि हमें दुनिया में अच्छाई ही दिखे।
2. ईर्ष्या और घृणा से बचें: बुरे भावनाओं से दूर रहकर हम सदा खुश रह सकते हैं।
3. आत्म-मूल्यांकन: हमें अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
लेखक परिचय
नाम: विजय गुप्ता
जन्म: 18 जुलाई, 1947
पेशा: शिक्षिका और कवयित्री
कार्यक्षेत्र: दिल्ली और अम्बाला
विशेषता: सरल भाषा में गहरी बातें कहने की कला
योग्यता विस्तार
1. दुर्योधन और युधिष्ठिर को अलग-अलग क्यों दिखे? दुर्योधन को सभी बुरे दिखे, क्योंकि उसका स्वभाव बुरा था, जबकि युधिष्ठिर को सभी अच्छे दिखे, क्योंकि उनका स्वभाव अच्छा था। अगर मुझसे पूछा जाता, तो मैं कहता कि मुझे सभी लोग अच्छे और बुरे दोनों तरह के दिखते हैं, क्योंकि हर इंसान में कुछ न कुछ अच्छाई और कमी होती है।
2. शिक्षाप्रद कहानी: कक्षा में पंचतंत्र की कहानी जैसे “दो बिल्लियों और बंदर” सुनाई जा सकती है, जो यह सिखाती है कि आपसी झगड़े से नुकसान ही होता है।
3. ऐतिहासिक बीरबल: बीरबल अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक थे। उनकी बुद्धिमानी और हास्यप्रिय स्वभाव के कारण उनकी कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।
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