सालिमअली
पाठ का परिचय
- सालिम अली का पूरा नाम सालिम मुईजुद्दीन अब्दुल अली था।
- वे एक असाधारण पक्षी-प्रेमी और पक्षीविज्ञानी थे।
- उन्होंने बया पक्षी के अध्ययन से बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की।
- उनकी खोज फिन बया पक्षी बहुत महत्वपूर्ण थी।
पुस्तकें:
- बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स: इसमें पक्षियों के रोचक वर्णन और सुंदर चित्र हैं।
- हैंडबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान: एस. डिलन रिप्ले के साथ लिखी गई, जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप के सभी पक्षियों की जानकारी है।
- पुरस्कार:
- जे. पॉल वाइल्ड लाइफ कंजरवेशन पुरस्कार।
- कई राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार।
- जन्म: 12 नवंबर 1896।
- मृत्यु: सन् 1987।
मुख्य बिंदु
1. बचपन की घटना
- घायल चिड़िया: 10 साल की उम्र में सालिम अली ने एक घायल चिड़िया उठाई, जो गौरैया जैसी थी लेकिन उसके गले पर पीला धब्बा था।
- चाचा की मदद: अपने चाचा अमीरुद्दीन तैयबजी के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी गए।
- मिलार्ड से मुलाकात: सोसाइटी के सचिव डब्लू. एस. मिलार्ड ने चिड़िया को नर बया पक्षी बताया, जो वर्षा ऋतु में पीले धब्बे से पहचाना जाता है।
- इस घटना ने सालिम अली में पक्षियों के प्रति जिज्ञासा जगाई।
2. पक्षियों के प्रति उत्साह
- मिलार्ड ने सालिम को मरे हुए पक्षियों के संग्रह दिखाए, जिनमें भूसा भरा था।
- सालिम को पक्षियों की इतनी विविधता देखकर आश्चर्य हुआ।
- वे बार-बार सोसाइटी जाकर पक्षियों को पहचानना और उनके संरक्षण के तरीके सीखने लगे।
- मिलार्ड की प्रतिक्रिया: उन्हें एक भारतीय बालक का पक्षियों में इतना उत्साह देखकर आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह उस समय असामान्य था।
3. शिक्षा और चुनौतियाँ
- सालिम अली के पास कोई विश्वविद्यालय डिग्री नहीं थी।
- कॉलेज छोड़ना: बीजगणित से डरकर कॉलेज छोड़ दिया।
- बर्मा यात्रा: भाई की वुलफ्रेम माइनिंग में मदद के लिए गए, लेकिन वहाँ भी पक्षियों की खोज में लगे।
- प्राणिशास्त्र कोर्स: घर लौटकर प्राणिशास्त्र में कोर्स किया और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में गार्ड बने।
- जर्मनी प्रशिक्षण: पक्षी संरक्षण का प्रशिक्षण लिया, लेकिन लौटने पर नौकरी चली गई।
4. वैवाहिक जीवन और आर्थिक स्थिति
- विवाह: सालिम अली की शादी हो चुकी थी, और उनकी पत्नी की निजी आय से आर्थिक सहारा मिला।
- किहीम में घर: बंदरगाह के पास पेड़ों के बीच एक शांत घर लिया।
- बया पक्षी का अध्ययन: किहीम में बया पक्षियों की बस्ती देखकर उनका अध्ययन शुरू किया।
5. बया पक्षी का अध्ययन
- 1930 में प्रकाशन: बया पक्षी के अध्ययन के परिणाम प्रकाशित किए, जिससे उन्हें पक्षीविज्ञान (ऑरनिथोलॉजी) में ख्याति मिली।
- प्रेक्षण का महत्व: उन्होंने धैर्यपूर्वक पक्षियों का अवलोकन किया और बार-बार परिणामों की जाँच की।
- विवाद: कुछ वरिष्ठ पक्षीविज्ञानियों से उनकी राय में टकराव हुआ, जैसे रैकेट टेल्ड ड्रोंगो के परों के बारे में। सालिम अली सही साबित हुए।
- फिन बया की खोज: कुमाऊँ की पहाड़ियों में 100 साल बाद विलुप्त माने गए फिन बया पक्षी को खोजा।
पुस्तकों का योगदान
1. बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स (1941):
इसमें पक्षियों के रोचक वर्णन और चित्र थे।
बच्चों और आम लोगों के लिए आसान और आकर्षक।
2. हैंडबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान:
10 खंडों में लिखी गई।
इसमें पक्षियों की आकृति, प्रजनन, प्रव्रजन और अन्य जानकारी शामिल थी।
महत्वपूर्ण गुण
1. जिज्ञासा: पक्षियों के बारे में जानने की उत्सुकता।
2. संकल्प: बिना डिग्री के भी पक्षीविज्ञान में महारत हासिल की।
3. धैर्य: लंबे समय तक प्रेक्षण और परीक्षण में लगे रहे।
4. स्वतंत्र सोच: किसी की बात को बिना जाँच स्वीकार नहीं करते थे।
5. लगन: उम्र के अंत तक पक्षियों के प्रति उत्साह बरकरार रहा।
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