भक्ति के पद
पाठ का परिचय
इस पाठ में चार भक्ति कवियों (सूरदास, तुलसीदास, रैदास, और मीराबाई) के भक्ति से भरे पद दिए गए हैं। ये सभी कवि भगवान के प्रति अपने गहरे प्रेम, समर्पण और भक्ति को व्यक्त करते हैं। प्रत्येक कवि ने अपने पदों में भगवान की शरण में रहने, उनसे एकाकार होने और उनके प्रति अटूट प्रेम का वर्णन किया है।
उद्देश्य:
- भगवान के प्रति प्रेम, समर्पण और भक्ति भाव को समझना।
- तत्सम और पर्यायवाची शब्दों का ज्ञान प्राप्त करना।
- दोहा और सोरठा जैसे छंदों की जानकारी लेना।
कवियों और उनके पद
1. सूरदास
जन्म: 1478 ई., रुनकता गाँव (मथुरा-आगरा)।
विशेषता: जन्म से अंधे, संगीत में निपुण, श्रीकृष्ण के भक्त, ‘सूरसागर’ के रचयिता।
निधन: 1582 ई. (104 वर्ष की आयु)।
पद का सार:
- सूरदास कहते हैं कि उनका मन भगवान के बिना सुख नहीं पाता, जैसे कोई पक्षी जहाज से उड़कर फिर वापस जहाज पर आता है।
- वे भगवान को कमल-नैन (कमल जैसे नेत्रों वाला), कामधेनु (सभी इच्छाएँ पूरी करने वाली गाय) मानते हैं और कहते हैं कि भगवान को छोड़कर कोई और सुख नहीं दे सकता।
- उदाहरण: “सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै?” (भगवान जैसे कामधेनु को छोड़कर कौन छोटी गाय को दुहेगा?)
2. तुलसीदास
जन्म: 1532 ई., राजापुर गाँव (बाँदा, उत्तर प्रदेश)।
विशेषता: राम भक्त, ‘रामचरितमानस’ के रचयिता, गुरु नरहरिदास के शिष्य।
निधन: 1623 ई. (91 वर्ष की आयु)।
पद का सार:
- तुलसीदास भगवान राम के चरणों को छोड़कर कहीं और जाने से इंकार करते हैं।
- वे कहते हैं कि भगवान ही पतितों (पापियों) और दीनों (गरीबों) को बचाने वाले हैं। उन्होंने खग (जटायु), मृग (मारीच), व्याध (वाल्मीकि), पाषाण (अहिल्या) आदि का उद्धार किया।
- उदाहरण: “जाऊँ कहाँ तजि चरन तिहारे?” (आपके चरण छोड़कर मैं कहाँ जाऊँ?)
3. रैदास
जन्म: 1388 ई., वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
विशेषता: भक्ति के लिए वैराग्य को जरूरी मानते थे, परम सत्य को अनिवर्चनीय (जो बताया न जा सके) मानते थे।
निधन: 1518 ई. (130 वर्ष की आयु)।
पद का सार:
- रैदास भगवान के साथ एकाकार होने की इच्छा रखते हैं।
- वे भगवान को चंदन, दीपक, मोती और स्वामी मानते हैं, और खुद को पानी, बत्ती, धागा और दास कहते हैं।
- उदाहरण: “प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाको अंग-अंग बास समानी।” (आप चंदन हैं, हम पानी, जो आपके साथ मिलकर सुगंध देता है।)
4. मीराबाई
जन्म: 1498 ई., चौकड़ी (मेड़ता, जोधपुर, राजस्थान)।
विशेषता: श्रीकृष्ण की भक्त, वैष्णव भक्ति में डूबीं, पति भोजराज की मृत्यु के बाद संसार से विरक्त होकर भक्ति में लीन।
निधन: 1546 ई.।
पद का सार:
- मीरा कहती हैं कि उन्हें राम के रूप में अनमोल रत्न मिल गया है, जो कभी खत्म नहीं होता और चोर नहीं चुरा सकता।
- सतगुरु की कृपा से उन्हें यह धन मिला, जिसने उनके जन्म-जन्म के दुख खत्म कर दिए।
- उदाहरण: “पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।” (मुझे राम रूपी अनमोल धन मिल गया।)
छंद परिचय
छंद: काव्य की रचना जो निश्चित गति (प्रवाह) और यति (विराम) के साथ होती है।
प्रकार:
- मात्रिक छंद: मात्राओं (स्वरों के उच्चारण समय) की गिनती पर आधारित। उदाहरण: दोहा, सोरठा।
- वर्णिक छंद: वर्णों की गिनती पर आधारित।
दोहा:
- चार चरण, विषम चरणों (1 और 3) में 13-13 मात्राएँ, सम चरणों (2 और 4) में 11-11 मात्राएँ।
- उदाहरण: “हरी डारि ना तोड़िए, लागै छूरा बान।”
सोरठा:
- दोहा का उल्टा। विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ, सम चरणों में 13-13 मात्राएँ।
- उदाहरण: “फूलहिं फलहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद।”
छंद के अंग:
- चरण: छंद की पंक्तियाँ।
- यति: रुकने का स्थान।
- गति: छंद का प्रवाह।
- तुक: चरणों के अंत में समान ध्वनि।
- मात्रा: स्वर के उच्चारण का समय। हस्व (1 मात्रा, जैसे अ, इ) और दीर्घ (2 मात्राएँ, जैसे आ, ई)।
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