परिचय
- यह कहानी रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित है।
 - यह पालित पशु-पक्षियों के प्रति स्नेह और वात्सल्य भाव को दर्शाती है।
 - कहानी में ग्वालिन हीरा और उसकी गाय कुणी की कहानी है, जो माँ और बच्चे के प्रेम को दर्शाती है।
 
कहानी का सार
- हीरा: एक ग्वालिन, जिसका एक महीने का बच्चा था।
 - कुणी: हीरा की गाय, जिसकी एक महीने की बछिया थी।
 - हीरा रोज रायगढ़ के पर्वत पर चढ़कर राजा को दूध देने जाती थी।
 - राजा कुणी के दूध का आनंद लेता था, लेकिन बछिया भूखी रहकर रोती थी।
 - हीरा बछिया को दूध नहीं पीने देती थी, उसे खूंटे से बांध देती थी।
 - रात को हीरा अपने बच्चे को दूध पिलाती और सुलाती, फिर बछिया को कुणी के पास ले जाती, लेकिन बछिया को थोड़ा ही दूध मिल पाता था।
 
मुख्य घटना
- एक दिन हीरा दूध बेचने किले में गई, लेकिन कोषाध्यक्ष ने पैसे देने में देरी की।
 - शाम को किले का फाटक बंद हो गया, और पहरेदार ने द्वार नहीं खोला।
 - हीरा अपने बच्चे के लिए छटपटाने लगी, रोते हुए पहरेदार से विनती की, लेकिन उसने नहीं सुना।
 - हीरा ने पुरानी दीवार और पीपल के पेड़ के रास्ते से खतरनाक चट्टानों पर उतरकर घर पहुंचने का फैसला किया।
 - रात के तीसरे पहर में वह घर पहुंची, अपने बच्चे को दूध पिलाया।
 - उधर, कुणी की बछिया ने रस्सी तोड़कर अपनी माँ से दूध पिया। उस दिन हीरा ने बछिया को नहीं बांधा।
 
कहानी का अंत
- सुबह राजा ने दूध मंगवाया, लेकिन हीरा ने कहा कि दूध सूख गया है।
 - सिपाही ने हीरा को जबरदस्ती किले में ले जाया।
 - राजा ने हीरा की पूरी कहानी सुनी, उसका दिल पिघल गया।
 - राजा ने हीरा को एक गांव जागीर में दिया और उस खतरनाक रास्ते का नाम “हीरा-कुणी” रखा, जिससे हीरा अपने बच्चे तक पहुंची थी।
 

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