1. आर्यभट्ट का परिचय
- आर्यभट्ट प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी थे।
- वे दक्षिणापथ (गोदावरी तट क्षेत्र) के अश्मक जनपद के निवासी थे।
- बाद में उन्हें “अश्मकाचार्य” के नाम से भी जाना गया।
- बचपन से ही उनकी बुद्धि तीव्र थी और उन्हें गणित तथा ज्योतिष में विशेष रुचि थी।
2. पाटलिपुत्र और नालन्दा
- पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र था।
- पाटलिपुत्र के पास नालन्दा विश्वविद्यालय स्थित था, जो उस समय का अत्यन्त प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था।
- यहाँ गंगा, सोन और गंडक नदियों का संगम होता है।
3. वेधशाला और प्रयोग
- पाटलिपुत्र से दूर एक आश्रम में ज्योतिषी और विद्यार्थी इकट्ठे होते थे।
- वहाँ ताँबे, पीतल और लकड़ी के विभिन्न आकारों के यंत्र रखे रहते थे (गोल, कटोरे जैसे, वर्तुलाकार और शंकु जैसे)।
- यह स्थान वास्तव में एक वेधशाला था।
- ज्योतिषी और विद्यार्थी ग्रहणों का समय निकालते और उसकी सत्यता की जाँच करते।
4. आर्यभट्ट के प्रमुख विचार
1. उन्होंने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, आकाश स्थिर है।
2. आकाश का तारामंडल स्थिर होने के कारण हमें वह पूर्व से पश्चिम की ओर चलता हुआ दिखता है।
3. ग्रहणों की सही व्याख्या की:
- चन्द्रग्रहण – पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ने से लगता है।
- सूर्यग्रहण – चन्द्रमा जब पृथ्वी और सूर्य के बीच आकर सूर्य को ढक लेता है।
4. उन्होंने बताया कि “राहु ग्रहण को निगलता है” जैसी मान्यताएँ गलत और कपोलकल्पित हैं।
5. आर्यभटीय ग्रन्थ
1. आर्यभट्ट ने संस्कृत में ‘आर्यभटीय’ नामक ग्रन्थ लिखा।
2. इसके चार भाग हैं :
- दशगीतिका
- गणित
- कालक्रिया
- गोल
3. इसकी रचना पद्मात्मक शैली में की गई थी।
4. इसकी ताड़पत्र पोथियों की खोज डॉ. भाऊ दाजी ने 1864 ई. में की।
6. भारतीय गणित और विज्ञान की देन
- प्राचीन भारत की सबसे बड़ी देन है दशमलव स्थानमान पद्धति (0 सहित 10 अंकों से बड़ी से बड़ी संख्या व्यक्त करना)।
- आर्यभट्ट ने गणित और ज्योतिष की एक नई परम्परा की शुरुआत की।
- उन्होंने अरब (1,00,00,00,000) तक की संख्याओं के नाम लिखे और समझाया कि प्रत्येक स्थान पिछले से दस गुना होता है।
7. आर्यभट्ट का महत्व
- आर्यभट्ट ने आँख मूँदकर गलत धारणाएँ स्वीकार नहीं कीं।
- वे निडर होकर अपने विचार प्रस्तुत करते थे।
- उन्होंने पृथ्वी की गति, ग्रहण और आकाशीय घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या दी।
- वे एक साहसी वैज्ञानिक और ज्योतिषी थे।
- इसलिए उन्हें प्राचीन भारतीय विज्ञान का सबसे चमकीला सितारा कहा जाता है
Leave a Reply