पंच परमेश्वर – सारांश
यह अध्याय “पंच परमेश्वर” मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया है, जिसमें सच्चे न्याय और पंच की महिमा को दर्शाया गया है। इसमें अलगू चौधरी और जुम्मन शेख की गहरी मित्रता दिखाई गई है। जुम्मन की मौसी ने अपनी संपत्ति उसके नाम कर दी, लेकिन बाद में उसकी उपेक्षा होने लगी। मजबूर होकर मौसी ने पंचायत बुलाई और सरपंच के रूप में अलगू चौधरी को चुना। पहले अलगू ने हिचकिचाहट दिखाई, परंतु मौसी ने कहा कि पंच न किसी का मित्र होता है, न शत्रु। फिर अलगू ने निष्पक्ष होकर मौसी के पक्ष में निर्णय दिया। इससे जुम्मन नाराज़ होकर अलगू का दुश्मन बन गया।
कुछ समय बाद अलगू का बैल मर गया और उसने दूसरा बैल समझू साहू को बेचा, जिसने उसे अधिक काम में लगाकर मार डाला और दाम चुकाने से इनकार कर दिया। अब पंचायत बुलाई गई और सरपंच जुम्मन चुना गया। सरपंच की कुर्सी पर बैठते ही जुम्मन का मन बदल गया और उसने निष्पक्ष होकर अलगू के पक्ष में न्याय किया। तब उसे समझ आया कि पंच का पद परमेश्वर का पद है, जहाँ न मित्रता रहती है न दुश्मनी, केवल न्याय होता है।
अंततः दोनों की मित्रता फिर से जीवित हो गई। इस कहानी का संदेश है कि सच्चा न्याय वही है जिसमें न पक्षपात हो और न निजी स्वार्थ, बल्कि “दूध का दूध और पानी का पानी” किया जाए।
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