वर दे – कविता का सारांश
“वर दे!” कविता, जो सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखी गई है, एक भावपूर्ण और भक्ति से भरी रचना है, जिसमें कवि माँ सरस्वती से नव-निर्माण और प्रेरणा का वरदान माँगते हैं। इस कविता में कवि माँ सरस्वती को “वीणावादिनि” कहकर संबोधित करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे भारत को स्वतंत्रता, अमृतमय मंत्र और नई ऊर्जा से भर दें। कवि चाहते हैं कि माँ सरस्वती अज्ञानता (अंध-उर) और बंधनों को काटकर लोगों के मन में ज्ञान और प्रकाश का प्रवाह करें, जिससे सारा संसार जगमग हो जाए। वे प्रकृति और मानव जीवन में नई गति, लय, ताल, छंद और स्वर चाहते हैं, जैसे नए आकाश में पक्षियों को नए पंख और नई आवाज़ मिले। कवि का सपना है कि भारत में हर तरफ नवीनता, उत्साह और ज्ञान का प्रकाश फैले।
इस कविता में छायावादी शैली की विशेषता दिखती है, जिसमें प्रकृति, भक्ति और मानव जीवन की सुंदरता को भावनात्मक रूप से व्यक्त किया गया है। कवि निराला, जो हिंदी साहित्य के महान छायावादी कवि हैं, ने इस कविता में मुक्त छंद का उपयोग किया है, जो उनकी रचनाओं की खासियत है। कविता के शब्द सरल लेकिन गहरे अर्थ वाले हैं, जैसे “ज्योतिर्मय निर्झर” (प्रकाशमय झरना) और “विहग वृंद” (पक्षियों का समूह)। कविता बच्चों को यह सिखाती है कि ज्ञान और स्वतंत्रता के लिए प्रार्थना करना और नई सोच को अपनाना कितना जरूरी है। अभ्यास प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को शब्दों के अर्थ, कविता के भाव और अलंकार समझने का मौका मिलता है, जैसे उपमा अलंकार और अनुप्रास। यह कविता न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह बच्चों को देशप्रेम, ज्ञान और सकारात्मकता की प्रेरणा भी देती है।
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