बिरसा मुण्डा – पाठ का सारांश
“बिरसा मुण्डा” में भारत के वीर जननायक और आदिवासी समाज के महान क्रांतिकारी बिरसा मुण्डा के जीवन और योगदान का वर्णन किया गया है। बिरसा मुण्डा का जन्म झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र के चारकाड़ गाँव में हुआ था। मुण्डा समाज प्रकृति पर निर्भर रहने वाला सरल जीवन जीने वाला समुदाय था, जो अंग्रेजों और जमींदारों के अन्याय से पीड़ित था। बचपन में बिरसा साधारण कार्य करते थे और बंसी बजाने के शौकीन थे। बाद में मिशन स्कूल में पढ़ाई करते समय उन्होंने अंग्रेजों की दासता और मुण्डाओं पर होने वाले शोषण को प्रत्यक्ष देखा। अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने के कारण उन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वे बीमारों का जड़ी-बूटियों से उपचार करने लगे और धीरे-धीरे लोगों के नेता और अवतारी पुरुष के रूप में माने जाने लगे।
बिरसा मुण्डा ने मुण्डा, उरांव और खड़िया जनजातियों को संगठित कर अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। वे लोगों से कहते थे कि अंग्रेजों और जमींदारों का हुक्म न मानें, किसी की बेगार न करें। उस समय आदिवासी अपनी ही जमीन पर मजदूर बन चुके थे, भूख और दमन से त्रस्त थे। बिरसा ने उनमें आत्मविश्वास जगाया और स्वतंत्रता की ज्वाला प्रज्वलित की। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों का शोषण अब और नहीं सहा जाएगा। उनके नेतृत्व में जनजातियों ने तीर-कमान और भालों से अंग्रेजी सत्ता का मुकाबला किया। अंग्रेज सरकार ने उन पर कई बार मुकदमे चलाए, जेल में डाला और कठोर दंड दिया, फिर भी वे डटे रहे।
अंततः अंग्रेजों ने छल से उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल में बीमारी और कठोर परिस्थितियों के कारण 1900 में उनकी मृत्यु हो गई। सरकार ने उनके दाह-संस्कार को सार्वजनिक रूप से न करके गुप्त रूप से कर दिया, क्योंकि वह विद्रोह से भयभीत थी। यद्यपि बिरसा अपने जीवनकाल में स्वतंत्रता का लक्ष्य पूरा न कर सके, पर उन्होंने आदिवासी समाज और पूरे भारत में आज़ादी की चेतना की जो लौ जलाई, वह आज भी जल रही है। बिरसा मुण्डा जनजातीय समाज के लोकदेवता बन गए और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका नाम सदा अमर रहेगा।
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