अमीर खुसरो – सारांश
पाठ “अमीर खुसरो” महान संत-कवि, संगीतकार और समन्वयवादी विचारक अमीर खुसरो के जीवन और रचनाओं पर आधारित है। खुसरो का जन्म 1253 ई. में दिल्ली के पास पटियाली गाँव में हुआ था। उनका असली नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन था। वे बचपन से ही बुद्धिमान, विवेकशील और विनम्र स्वभाव के थे। उनके पिता जागीरदार थे और दरबारों से जुड़े हुए थे। पिता की मृत्यु के बाद खुसरो अपने ननिहाल दिल्ली आए और वहीं सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य बने। गुरु-शिष्य का यह रिश्ता अत्यंत आत्मीय और प्रेरक था।
खुसरो ने लोकभाषा में काव्य रचना की, जिससे आगे चलकर उर्दू साहित्य विकसित हुआ। उनकी रचनाएँ सरल, मधुर और जनमानस को छूने वाली थीं। उन्होंने पहेलियों और मुकरियों के माध्यम से रोचक ढंग से विचार प्रस्तुत किए। साथ ही उन्होंने मन को भावविभोर करने वाले बसंत गीत और बाबुल गीत भी लिखे। खुसरो की रचनाओं में भारतीय संस्कृति, जलवायु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और विभिन्न धर्मों का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। वेदांत, बौद्ध और इस्लाम दर्शन को उन्होंने सहज रूप से अपने साहित्य में पिरोया।
खुसरो सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष, देशभक्त और मानव समानता के पक्षधर थे। वे कहते थे – “यह मेरा वतन है, मेरी भारत माता है।” गुरु के निधन पर उनकी अंतिम रचना “गोरी सोवे सेज पर…” लिखी गई, जिसके बाद वे वैराग्य की ओर प्रवृत्त हो गए। अमीर खुसरो का जीवन और साहित्य हमें प्रेम, भाईचारा और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देता है।
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