प्राण जाएं पर वृक्ष न जाए – सारांश
यह पाठ पर्यावरण और वृक्षों की रक्षा के महत्व को समझाता है। आज विश्व में वृक्षों की घटती संख्या और बढ़ते प्रदूषण के कारण पर्यावरण संरक्षण की चिंता बढ़ रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोकने और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। करीब 500 साल पहले, भगवान जम्भेश्वर ने विश्नोई समाज की स्थापना की और 29 सरल नियमों के माध्यम से प्रकृति, वृक्षों और जीवों की रक्षा करने की शिक्षा दी। विश्नोई समाज ने इन नियमों का पालन करते हुए वृक्षों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए कई बलिदान दिए। एक प्रेरक घटना में, जोधपुर के खेजड़ली गाँव में राजा अभयसिंह के सैनिकों ने महल बनाने के लिए पेड़ काटने की कोशिश की। विश्नोई समाज की अमृता देवी और 362 अन्य लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। अमृता देवी ने नारा दिया, “सिर साँटे पर रूख रहे तो भी सस्तो जाण,” जिसका अर्थ है कि सिर कट जाए लेकिन पेड़ बचे तो यह सस्ता सौदा है। इस बलिदान से प्रभावित होकर राजा ने माफी मांगी और ताम्रपत्र पर आदेश जारी किया कि विश्नोई गाँवों में कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा। इसी तरह, हिरणों की रक्षा में भी विश्नोई समाज ने बलिदान दिए, जैसे 1996 में निहालचंद विश्नोई को हिरणों की रक्षा करते हुए शहादत के लिए भारत सरकार ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया। यह पाठ बताता है कि पेड़ और जीव-जंतु हमारे पर्यावरण के लिए कितने जरूरी हैं और हमें उनकी रक्षा के लिए वृक्षारोपण और संरक्षण करना चाहिए। अमृता देवी और अन्य शहीदों की याद में भारत सरकार और मध्यप्रदेश सरकार हर साल पुरस्कार देती हैं, जो पर्यावरण और वन संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं।
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