गिरधर की कुण्डलियाँ – सारांश
यह पाठ गिरधर कविराय की कुण्डलियाँ पर आधारित है, जिसमें लोक व्यवहार की उपयोगी शिक्षा दी गई है। इन कुण्डलियाँ से हम सीख सकते हैं कि जीवन को कैसे सहज और बेहतर बनाया जाए। पहली कुण्डलिया में कहा गया है कि धन पाकर सपने में भी अभिमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि धन चंचल है और चार दिनों का मेहमान जैसा है, जो ज्यादा देर नहीं ठहरता। जीवन में यश कमाने के लिए मीठे वचन बोलें और सबके साथ विनम्रता से व्यवहार करें। गिरधर कहते हैं कि धन सबके पास चार दिनों का मेहमान होता है, इसलिए इसे तौलकर समझें। दूसरी कुण्डलिया में गुणों की महत्ता बताई गई है कि गुणों के ग्राहक हजारों लोग होते हैं, लेकिन बिना गुणों के कोई नहीं अपनाता। जैसे कौआ और कोयल दोनों का रंग एक है, लेकिन कोयल की बोली सबको सुहावनी लगती है, जबकि कौआ अपावन माना जाता है। गिरधर कहते हैं कि मन के ठाकुर सुनो, बिना गुणों के कोई नहीं लेता, गुणों के ग्राहक सहस नर होते हैं। तीसरी कुण्डलिया में सलाह है कि बीती बातों को भूलकर आगे की सुधि लें, जो सहज में बन आए उस पर चित्त दें। इससे दुर्जन हँसते नहीं और चित्त में खता नहीं पाते। गिरधर कहते हैं कि आगे के सुख को समझकर बीती को बीती मानें और मन में यह विश्वास रखें।
पाठ में गिरधर कविराय का परिचय दिया गया है कि उनका जन्म संवत् 1770 में हुआ, अवध में जन्मस्थान माना जाता है। उन्होंने बहुत सी कुण्डलियाँ लिखीं जो लोकप्रिय हैं। राज्य त्यागकर पत्नी के साथ भटकते रहे और उसी समय कुण्डलियाँ रचीं। जिनमें ‘साईं’ से शुरू होने वाली उनकी पत्नी की हैं, बाकी खुद की। उनकी कुण्डलियाँ एक पुस्तक में संग्रहीत हैं। शिक्षण संकेत में बताया गया है कि पंक्तियों को हाव-भाव और लय से पढ़ें, बच्चों से पढ़वाएँ, अन्य कवियों जैसे काका हाथरसी, दीनदयाल, गिरि की कुण्डलियाँ पर चर्चा करें, अर्थ स्पष्ट करें और लोक व्यवहार में उपयोगिता बताएँ।
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