समय पर मिलने वाले – सारांश
पाठ “समय पर मिलने वाले” हरिशंकर परसाई का हास्य-व्यंग्य है जिसमें ऐसे लोगों की आदतों पर चुटकी ली गई है जो समय तय करने के बावजूद घर पर नहीं मिलते। लेखक बताते हैं कि मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं – एक वे जिन्हें समय पर घर नहीं मिलता, दूसरे वे जो समय पर किसी के घर नहीं जाते और तीसरे वे जो न समय पर मिलते हैं और न ही समय पर जाते हैं। ऐसे लोग दूसरों को घंटों इंतज़ार कराते हैं, जिससे अतिथि असहज और परेशान हो जाता है। घर के बच्चे बहाने बनाते रहते हैं और औरतें भीतर से उनकी उपस्थिति पर तंज कसती हैं।
लेखक अपने अनुभवों के माध्यम से बताते हैं कि ऐसे लोग बार-बार मिलने का वादा करते हैं लेकिन निभाते नहीं। कभी वे स्वयं दूसरे घर भोजन कर रहे होते हैं, कभी रास्ते में किसी से मिलकर वहीं रुक जाते हैं। धीरे-धीरे लेखक समझ जाते हैं कि उनसे मिलने का समय तय करने का कोई अर्थ नहीं। लेखक व्यंग्यपूर्वक कहते हैं कि ऐसे लोग भगवान के एजेंट जैसे हैं क्योंकि उनके कारण हमें धैर्य और प्रतीक्षा करने का अभ्यास हो जाता है।
इस व्यंग्य में परसाई जी ने समाज की उस आदत पर प्रकाश डाला है जिसमें लोग समय की पाबंदी नहीं रखते और अपना व दूसरों का समय खराब करते हैं। पर वे मजाकिया ढंग से यह भी कहते हैं कि शायद ऐसे लोग ज्ञानी हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि आत्मा अमर है और जो काम आज नहीं हुआ, वह अगले जन्म में पूरा हो जाएगा। यह पाठ हमें समय के महत्व को समझाने के साथ-साथ हँसाते हुए सोचने पर मजबूर करता है।
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