लक्ष्य-वेध – सारांश
“लक्ष्य वेध” में लेखक श्रीरामनाथ सुमन जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने और उसे प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। लेखक बताते हैं कि जिस व्यक्ति ने अपना लक्ष्य तय कर लिया, उसने जीवन की सबसे बड़ी कठिनाई को दूर कर लिया, क्योंकि अनिश्चय और भ्रम से वह मुक्त हो जाता है। लक्ष्य प्राप्ति का मूल मंत्र है तन्मयता, जिसका अर्थ है अपने लक्ष्य में पूरी तरह डूब जाना, सोते-जागते हर पल उसी का ध्यान रखना, ताकि लक्ष्य के अलावा कुछ और न दिखे। इस तन्मयता को समझाने के लिए दो ऐतिहासिक घटनाएँ दी गई हैं। पहली घटना महाभारत काल की है, जिसमें आचार्य द्रोण ने राजकुमारों की बाण विद्या की परीक्षा ली। उन्होंने एक चिड़िया की आँख की पुतली को निशाना बनाने को कहा और पूछा, “तुम्हें क्या दिखाई देता है?” सभी ने अलग-अलग चीजें बताईं, लेकिन अर्जुन ने कहा कि उन्हें सिर्फ़ पुतली दिखाई देती है। उनकी एकाग्रता ने उन्हें सफल बनाया। दूसरी घटना मराठा इतिहास की है, जहाँ सिंहगढ़ पर विजय के लिए मराठों ने दृढ़ संकल्प लिया। जब उनका नेता ताना जी मारा गया और सैनिक भागने लगे, तो ताना जी के भाई सूर्या जी ने रस्सी काट दी, जिससे मराठों को पीछे हटने का रास्ता बंद हो गया। तब वे लक्ष्य में तन्मय होकर लड़े और सिंहगढ़ जीत लिया। दोनों घटनाएँ बताती हैं कि लक्ष्य में पूरी तरह डूबने और अन्य विकल्पों को खत्म करने से सफलता मिलती है। लेखक कहते हैं कि बाण की तरह, जो सिर्फ़ अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहता है, हमें भी अपने लक्ष्य पर एकनिष्ठ रहना चाहिए। कुतुबनुमा की सुई की तरह हमारा ध्यान ध्रुवतारे पर टिका रहे। तन्मयता से सूर्य की किरणों को एक बिंदु पर केंद्रित कर आग जलाई जा सकती है, उसी तरह मन और शरीर की सारी शक्ति को लक्ष्य पर लगाने से सफलता निश्चित है। लेखक बताते हैं कि संसार में कई लोग काम करते हैं, लेकिन लक्ष्य के प्रति समर्पित लोग ही संसार को हिलाते हैं।
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