ग्राम्य जीवन – सारांश
पाठ “ग्राम्य जीवन” कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा गाँव के सरल, स्वच्छ और प्रेममय वातावरण का सुंदर चित्रण करता है। कवि बताते हैं कि गाँव का जीवन बहुत सहज और संतोषजनक होता है। यहाँ आडंबर, छल-कपट और अनाचार का स्थान नहीं है। ग्रामीण लोग सीधे-सादे, भोले-भाले और ईश्वर में विश्वास करने वाले होते हैं। वे तन से भले ही साँवले हों, पर मन से उज्ज्वल और निर्मल होते हैं। गाँव के लोगों में आपसी प्रेम, समानता और सहानुभूति होती है।
गाँव के घर छोटे-छोटे मिट्टी के बने होते हैं, जिन्हें साफ-सुथरा और सुंदर बनाए रखा जाता है। आँगन में गोबर से लीपा-पोता जाता है और वहाँ घड़े रखे रहते हैं। खपरैलों पर बेलें छा जाती हैं जिन पर लौकी, कद्दू आदि लटकते हैं। गाँव की शुद्ध हवा इतनी लाभकारी होती है कि डॉक्टर की दवा भी उसके सामने फीकी लगती है। शाम के समय गाँव के बाहर का प्राकृतिक सौंदर्य मन को बहुत भाता है।
ग्रामीण लोग मेहनती और श्रमशील होते हैं। वे आलस में समय नहीं गँवाते बल्कि पूरे दिन खेतों में परिश्रम करते हैं। अतिथि सत्कार उनकी विशेषता होती है। जब भी कोई अतिथि आता है तो उसका स्वागत अपने ही संबंधी की तरह करते हैं। कवि के अनुसार ग्राम्य जीवन में सरलता, श्रम, स्वच्छता, प्रेम और आतिथ्य की भावना है, जो इसे शहरी जीवन से श्रेष्ठ बनाती है।
Leave a Reply