याचक और दाता – सारांश
“याचक और दाता” रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानी ‘भिखारिन’ पर आधारित है, जो मानवीय मूल्यों जैसे ईमानदारी और निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा देती है। कहानी में एक नेत्रहीन वृद्धा मंदिर के पास फूल बेचकर अपनी आजीविका चलाती है और एक अनजान बच्चे का पालन-पोषण करती है। वह सुबह से शाम तक मंदिर में फूल बेचती, अपनी मधुर बोली से दर्शनार्थियों को आकर्षित करती और रात को अपनी झोपड़ी में लौटकर बच्चे को प्यार करती। यह बच्चा कुछ वर्ष पहले रोता हुआ मिला था, जिसे वृद्धा ने अपनी गोद में लिया और ममता से पाला। वह मेहनत से कमाए पैसे हाँड़ी में जमा करती, ताकि बच्चे का भविष्य सुखद हो। मंदिर के पुजारी की दया से उसे फूल मिलते, और वह फुलवारी की सेवा करती। उसी नगर में सेठ बनारसीदास, जो धर्मात्मा माने जाते थे, रहते थे। लोग उनके पास कर्ज या अमानत रखने आते। वृद्धा ने चोरी के डर से अपनी जमा पूँजी सेठ को दी, लेकिन जब बच्चा बीमार हुआ और उसे पैसे चाहिए थे, सेठ ने पैसे देने से इन्कार कर दिया। वृद्धा रोती-गुहारती रही, पर सेठ नहीं पसीजे। गुस्से में वृद्धा बच्चे को लेकर सेठ के घर धरना देने बैठ गई। सेठ ने बच्चे को देखा तो पहचान लिया कि वह उनका सात साल पहले खोया बेटा मोहन है। सेठ ने बच्चे को बचाने के लिए डॉक्टर बुलाया, लेकिन मोहन माँ (वृद्धा) को पुकारता रहा। उसकी हालत बिगड़ने लगी। सेठ ने वृद्धा को झोपड़ी से बुलाया, जो खुद ज्वर से पीड़ित थी। वृद्धा ने ममता से मोहन को गोद में लिया, और उसकी हालत सुधर गई। कुछ दिन बाद मोहन स्वस्थ हो गया। वृद्धा ने मोहन को सेठ को सौंपकर अपनी हाँड़ी लौटाने को कहा, जो उसने मोहन के लिए ही जमा की थी। वह झोपड़ी लौट गई, आँसुओं में ममता की गंध थी। कहानी दिखाती है कि सेठ याचक बन गया, जबकि वृद्धा की निस्वार्थ ममता ने उसे दाता बना दिया। लेखक रवीन्द्रनाथ ठाकुर बंगला साहित्य के महान साहित्यकार हैं, जिन्हें राष्ट्रगान और नोबेल पुरस्कार के लिए जाना जाता है।
Leave a Reply