नव संवत्सर – सारांश
नव संवत्सर का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, जिसे गुड़ी पड़वा भी कहा जाता है। इस दिन से ही विक्रम संवत् की गणना शुरू होती है। माना जाता है कि इसी तिथि को ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया था और सतयुग का प्रारंभ हुआ था। महाराष्ट्र में इस दिन आँगन में बाँस पर गुड़ी (ध्वज) फहराकर उत्सव मनाया जाता है।
पाठ में बताया गया है कि संवत्सर समय की गणना का एक चक्र है। भारतीय पंचांग के अनुसार वर्ष को बारह महीनों, छह ऋतुओं और 360 तिथियों में बाँटा गया है। प्रत्येक माह के दो पक्ष होते हैं – शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा तक) और कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या तक)। भारत में सौरवर्ष (365 दिन) और चान्द्रवर्ष (354 दिन) दोनों की गणना होती है। दोनों में सामंजस्य बनाने के लिए प्रत्येक 32-33 महीनों में एक अतिरिक्त महीना (अधिक मास) जोड़ा जाता है।
विक्रम संवत् की परंपरा सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व 57 में विदेशी आक्रमणकारियों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में शुरू की थी। भारत के महीनों के नाम हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। उत्तर भारत में संवत्सर का आरंभ चैत्र से और दक्षिण भारत में कार्तिक से माना जाता है। व्यापारी वर्ग दीपावली पर कार्तिक मास से नया वर्ष और नया बहीखाता शुरू करता है।
नव संवत्सर का सम्बन्ध ऋतु परिवर्तन और नवरात्रि से भी है। चैत्र माह में बसंत ऋतु आती है, जब प्रकृति नया श्रृंगार करती है। इस अवसर पर वासंतीय नवरात्रि और रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। इसी प्रकार शारदीय नवरात्रि का समापन दशहरे पर होता है, जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।
इस दिन भगवान झूलेलाल की जयंती (चैती चाँद) भी मनाई जाती है। वे सिन्ध प्रदेश के संत थे और साम्प्रदायिक सद्भाव तथा एकता के प्रतीक माने जाते हैं।
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