महेश्वर – सारांश
यह पाठ महेश्वर नगर के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर आधारित है। महेश्वर मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर बसा एक प्राचीन नगर है। पुरातात्विक दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ की खुदाई से पाषाण काल से लेकर मराठा काल तक की सभ्यता और संस्कृति के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महेश्वर का प्राचीन नाम माहेश्वरी या माहिष्यमती था। इसे सूर्यवंशीय राजा मान्धाता ने बसाया था। बाद में कीर्तवीर्य सहस्त्रार्जुन ने इसे अपने हैहय साम्राज्य की राजधानी बनाया। सहस्त्रार्जुन का अंत भगवान परशुराम ने किया क्योंकि उसने परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया था।
महेश्वर को पुनः प्रसिद्धि महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने दिलाई। उन्होंने यहाँ किला, भगवान शिव का विशाल मंदिर और घाटों का निर्माण कराया। मंदिर में स्थित शिवलिंग ‘महेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध है और अहिल्याबाई द्वारा प्रज्ज्वलित अखण्ड दीप आज भी जल रहा है। यहाँ आने वाला प्रत्येक व्यक्ति घी अर्पित कर स्वयं को धन्य समझता है। नर्मदा तट पर आरती, मंत्रोच्चार और प्राकृतिक सौन्दर्य वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।
महेश्वर में प्रागैतिहासिक काल के पत्थर के औजार, लाल-काले मिट्टी के बर्तन, घड़े और ईंटों के भवनों के अवशेष मिले हैं। मौर्य, सातवाहन और गुप्त कालीन सभ्यता का प्रभाव भी यहाँ स्पष्ट दिखाई देता है। धातुओं और कलात्मक वस्तुओं का निर्माण भी यहाँ प्रचलित था। इन अवशेषों को आज संग्रहालयों में रखा गया है।
मराठा शासनकाल में अहिल्याबाई ने न केवल घाटों और मंदिरों का निर्माण कराया बल्कि महेश्वर का सर्वांगीण विकास किया। यहाँ की बनी महेश्वरी रेशमी साड़ियाँ आज भी प्रसिद्ध हैं।
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